अमेरिकन सोसाइटी ऑफ़ एग्रिकल्चरल ऎंड बायोलोजिकल इंजीनीयर्स (ASABE) की वार्षिक संगोष्ठी इस बार मिनिआपोलिस में आयोजित की गयी थी। इस बार संगोष्ठी में हम भी अपने शोध का हिस्सा प्रस्तुत करने गए the। मिनिआपोलिस भी एक बड़ा शहर है। सैंट पॉल के साथ इन दोनो शहरों को ट्विन सिटीज़ भी कहा जाता है। ब्लैक्स्बर्ग से १८ घंटा गाड़ी चलाकर यानी करीब १००० मील, हम शनिवार कि रात मिनिआपोलिस से सटे ब्लूमिन्गटन में पहुंचे। उसके बाद चार दिन संगोष्ठी में कैसे बीत गए पता नहीं चला। इस बीच कई पुराने मित्रों से मिलना भी हुआ। इलाहबाद कृषी संस्थान से पढ़े हुए लोगों की एक येक मीटिंग भी आयोजित थी। खाने पीने के अलावा इस बात पर भी विचार विमर्श किया गया कि कि अपने संस्थान को किस प्रकार सहयोग दे सकते हैं। मिनिआपोलिस में कई भारतीय रेस्त्रां हैं, और ये खाने पीने के लिए बढ़िया जगह है। मुख्य शहर या डाउनटाउन काफी खूबसूरत है। डाउनटाउन की सारी इमारतें एक दूसरे से स्काईवे के द्वारा जुड़ी हुईं हैं। यानि आप बाहर निकले बिना किसी भी इमारत से किसी भी इमारत में जा सकते हैं। एसा इसलिए है, क्यूँकि सर्दियों में यहाँ न्यूनतम तापमान आसानी से शून्य से ३० डिग्री नीचे चला जाता है, और तब पैदल चल पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। मिनेसोटा राज्य जिसकी राजधानी मिनिआपोलिस है को झीलों का राज्य भी कहा जाता है, क्यूंकि यहाँ करीब १०००० झीलें हैं। मिनिअपोलिस के आस पास भी कई झीलें हैं, जिनको उनकी प्राकृतिक अवस्था में रखने का प्रयास किया जाता है। इसलिये भरे पूरे शहर से सटी हुई झीलें एकदम अलग ही दुनिया में ले जाती हैं। मिनिआपोलिस में अमरीका का सबसे बड़ा शॉपिंग मॉल भी है। इस मॉल के अन्दर एक एक्वेरियम है, एक थीम पार्क है, और सैकड़ों दुकानें तो खैर है ही। इस मॉल में भी हमने काफी समय बताया। संगोष्ठी के अन्तिम दिन हमारा अंत में प्रस्तुतीकरण था। अब चूंकि अगले दिन सबेरे ४ बजे निकलना था ब्लैक्स्बर्ग के लिए, इसलिये अन्तिम रात को जल्दी ही सुत गए। रास्ते में समय पास करने के लिए गाड़ी में कई खेल खेले, और ४ जुलाई को बजाने के लिए ख़ूब सारे पटाखे भी खरीदे। थोड़ी बहुत कहानी ये तसवीरें बता देंगी। अब अगली यात्रा बहुत जल्दी ही सैन फ़्रांसिस्को की है। पिछली बार जो जगहें ठीक से नहीं देख पाए थे, उनके बारे में बताएँगे। और हाँ इस बार कैमरा नहीं भूलूंगा। राग |
Monday, July 02, 2007
मिनिआपोलिस की हमारी यात्रा
Sunday, June 10, 2007
पूरी बांह या आधी बांह?
दरजी की दुकान पर ये बात सुनने में अच्छी लग सकती है, मगर सोचिये अगर कोई आपका हाथ काटने से पहले ये सवाल करे तो? एक और फिल्म देखी हाल में वो थी होटल रवांडा। तुत्सी और हुतु जातियों के बीच हो रहे गृह युद्ध की पृष्ठभूमि में बनी ये फिल्म आपको इन्सान होने पर शर्मसार कर देगी। कितना भी कड़ा दिल कर लीजिये, फिल्म देख कर आंसू तो आने ही हैं। एक दृश्य है फिल्म का जिसमें फिल्म का मुख्य किरदार पॉल सबेरे सबेरे धुंध में गाड़ी से आ रह था। अचानक गाड़ी झटके खाने लगी तो पॉल नीचे उतर कर देखता है की सारी सड़क पर लाशें बिछी हैं जिनपर गाड़ी झटके खा रही थी। एक और दृश्य है जिसमें पॉल अपनी बीवी को छत पर बडे प्यार से डिनर के लिए बुलाता है और फिर उसे बड़े प्यार से समझाता है की अगर उपद्रवी होटल में आ गए तो उसे किस तरह से छत से कूद कर जान देनी होगी। दस लाख से ऊपर लोगों की मौत और इससे ज्यादा लोगों का विस्थापन, ये था नतीजा इस गृह युद्ध का। बार बार यही सोच रहा था की इन्सान आख़िर क्या चाहता है? है अगर सच देखने की हिम्मत तो ज़रूर देखियेगा इन दोनों फिल्मों को। राग मेरी कुछ पसंदीदा फिल्मों की सूची यह देखिए। |
Saturday, June 02, 2007
हम अपनेआप को क्या समझते हैं?
अभी थोड़ी देर पहले रवि रतलामी जीं के चिट्ठे पर ये विषय पढ़ा जिसमें लेखक हमसे ये पूछ रहे हैं कि हमें किस बात का घमंड है? बहुत सोचा, बहुत सोचा पर कुछ खास समझ नहीं आया तो स्वदेस फिल्म का यू ट्यूब से विडिओ खोजा। मूवी तो आपने देखी ही होगी मगर ये दृश्य बढ़िया रहेगा, याद ताज़ा करने के लिए। मेरे ख़याल से ये दृश्य इस फिल्म का मुख्य दृश्य था। आपने फिल्म देखी हो या ना देखी हो पर इस विडिओ के शुरू के पांच मिनट ज़रूर देखिए। शायद रवि जीं के चिट्ठे पर पूछे गए सवाल का जवाब भी मिल जाये। अभी आज सुबह किसी को भारत में फ़ोन किया, तो उन्होने बताया कि उनका दिल्ली जाने का कार्यक्रम रद्द हो गया है, क्यूंकि माहौल खराब है, गुर्जरों के विरोध के कारण। मैंने उनसे कहा कि हिंदुस्तान में सब बौरा गए हैं क्या कि कोई भी समस्या हो, सब राशनपानी लेकर सड़क पर उतर जाते हैं और तोड़ फोड़ चालू हो जाती है। उन्होंने जवाब में कहा कि ये तो सब जगह है अब अमेरिका में ही किसी ने धमकी दी है कि वो ९/११ वाले आक्रमण से कुछ बड़ा करेगा और वर्जीनिया टेक में हुई घटना से कुछ बड़ा करेगा। और जो ये सब करेगा वो एक अमेरिकी ही है। उन्होने कहा कि भारत में तो यह समाचार में ख़ूब आ भी रहा है। मुझे लगा कि जिस खबर कि अमेरिका में कुछ खास क़दर नहीं है, उसे भारत में क्यूँकर लगातार दिखाया जा रहा है पता नहीं (वैसे ये कुछ दिन पुरानी खबर है)। और इसके अलावा ये कि इस बात का मेरी कही बात का इस बात से क्या संबंध है? किस बात का हमें घमंड है हमें जो हम अपनी कमियाँ नहीं स्वीकार करते या करना चाहते? राग |
हम अपना दरवाज़ा बंद कर लें और तुम अपना
किसी हिंदु मंदिर में अब ग़ैर हिंदुओं का आना मना कर दिया गया है। असम में हिंदी भाषियों का रहना मुहाल हो रहा है। कभी कभी महाराष्ट्र में दूसरे राज्य वालों को निकालने कि बात आती है, ब्रिटेन में इतने सालों से बसें डॉक्टरों के अब वहाँ बसे रहने में समस्या शुरू कर दी गयी है। इन्सान का इस प्रकार घूमना या यायावर होना ही उसकी प्रजाति के सफल होने का कारण रहा है। यद्यपि अब हमारे पास लाजवाब तकनीकें आ गयी हैं यात्रा करने के लिए और कहने को धरती छोटी हो गयी है, लेकिन हमारा दिमाग उससे भी ज्यादा छोटा हो गया है। देश की सीमायें बना के हमने लोगों के रहने और बसने की सीमायें तो निर्धारित कर दीं हैं, लेकिन हमारा सोच का छोटा होना उससे भी नहीं रुका। अब हम लोगों को अपने राज्य में नहीं घुसने देना चाहते, मोहल्ले में नहीं घुसने देना चाहते, अपने मंदिर और मस्जिद में नहीं घुसने देना चाहते। जाने क्या लगता है ऐसे सीमायें बनने वालों को? क्या पृथ्वी के उत्थान से हिंदु, मुसलमान या कोई और धर्म था? ये देश और राज्य की सीमायें हज़ारों लाखों साल से क्या ऐसी ही हैं? ये सब सीमायें हमारे जैसे इंसानों की ही बनाई गयी हैं और हम ही इसे बदल भी सकते हैं। धर्म से इसलिये भी मुझे नफरत हैं क्यूंकि ये बताता है की एक इन्सान दूसरे से अलग क्यों और कैसे है, इस बारे में पहले एक बार मैं यहाँ लिख चुका हूँ। जब तक ये मूर्खतापूर्ण बातें आम लोगों के दिलों में सीमा ना बनायें तब तक तो अच्छा है, लेकिन दुर्भाग्य की, ऎसी छोटी बातें धीरे धीरे आम लोगों के दिलों में भी दीवार बना लेती हैं.... राग |
Sunday, May 27, 2007
स्पाइडरमैन - ३ देख ली
वैसे देखे हुए तो करीब अब एक हफ्ता हो ही गया। बढ़िया फिल्म है। अब स्पाइडरमैन की फिल्म में एक्शन, स्टंट, और बेहतरीन प्रभाव तो होते ही हैं, लेकिन इसके अलावा भी कहानी में एक खास बात होती है जो आपको बाँध कर रखती है। स्पाइडरमैन श्रंखला कि मैंने तीनों फिल्में देखीं है और कई कई बार देखी हैं। मूवी के अपने कुछ खास पल हैं। पीटर पार्कर और मैरी जेन का मकड़ी के जाल पर बैठ कर बातें और प्यार करने का दृश्य बड़ा ही खूबसूरत बना है। एक बहुत ही महत्वपूर्ण दृश्य तब है जब पीटर पार्कर अपनी आंटी से कहता है की वो मैरी से शादी करने के लिए कहेगा। इस समय बाक़ी बातों के अलावा पीटर कि आंटी उसे बताती है की शादी से पहले इस बात का वादा करो कि खुद से आगे हमेशा अपनी पत्नी को रखोगे। और ये भी की लड़कियों से शादी के लिए पूछना उनके लिए एक बहुत खास पल होता है, और इसको जितना खूबसूरत बना सको, बनाना। अब मैं पीटर कि आंटी के सारे उदगार बता दूंगा तो आपका मूवी का मज़ा खराब हो जाएगा। स्पाइडरमैन-३ ज़रूर देखिए क्यूंकि इसमें स्पाइडरमैन है, खूबसूरत मैरी जेन है, बेहतरीन स्टंट, और एक्शन है, लेकिन इससे भी बड़ी बात है आपको बाँध के रखने वाली कहानी। राग |
Monday, May 21, 2007
सैन फ्रांसिस्को की हमारी ताज़ा यात्रा
अमरीका में रहते हुये अब ५ साल से ऊपर हो गए मगर पश्चिम में जाने का मौका हमें अब मिला। यूँ तो यात्रा करीब ४ दिन की थी, मगर दौड़ भागी में ही समय निकल गया और पर्यटन कम हो पाया। लेकिन हर नयी जगह का अपना अनुभव अलग ही होता है। सबसे बड़ी गलती ये कि हम जाते वक्त अपना कैमरा भूल गए, अब इस पर कितनी डांट खायी, ये बात फिर कभी। एक खास बात जो देखी सैन फ़्रांसिस्को में वो ये कि वहाँ के लोग पर्यावरण के प्रति बाक़ी जगहों से जागरूक लगे। कूड़ा रिसाईकल करने के लिए सब जगह सुविधाएं थीं। अधिकतर लोग सी ऍफ़ एल बल्ब का प्रयोग करते हैं। यहाँ तक कि विशालकाय सैन फ़्रांसिस्को पुल पर भी सी ऍफ़ एल बल्ब लगे थे। सैन फ़्रांसिस्को से कई छोटे शहर भी जुड़े हुए हैं, जैसे कि फ्रेमोंट, जहाँ काफी भारतीय रहते हैं। फ्रेमोंट इतना खूबसूरत है, जैसे जन्नत, बिना किसी अतिशयोक्ति। फिर से तस्वीरों कि कमी खल रही है। वहाँ एक भारतीय-पाकिस्तानी भोजनालय में ख़ूब खाना खाया। गजब का सस्ता खाना, और बड़ा स्वादिष्ट। शाम को खाने के समय ऐसे भीड़ देखने को मिलती कि लगता कोई अपने घर में खाना बनाना ही नहीं चाहता। लोग फ़ोन से आर्डर करके फिर खाना लेके भी जाते थे। सफाई के बारे में ज्यादा कुछ खास नहीं कहा जा सकता, लेकिन जहाँ इतना खाना बनता हो वहाँ ठीक ही होगा ;)। मगर जाने क्यों भारतीय दुकानों के शौचालय कहीँ साफ क्यों नहीं मिलते? कहना मुश्किल है मगर क्या ये हमारा राष्ट्रीय चरित्र दिखाता है? एक दो भारतीय कपड़ों की दुकान भी दिखी, पर जाने क्यों महिलाओं के भारतीय कपड़े अमरीका में बड़े ही बेकार मिलते हैं (हमारी धर्म पत्नी के अनुसार)। जैसा हमने पहले कहा है सैन फ़्रांसिस्को में मानचित्र आसानी से मिल जाते हैं, लेकिन यहाँ अमेरिका के बाक़ी शहरों की तरह हर हाईवे एग्जिट की संख्या नहीं होती, जिससे कई बार धोखा हो सकता है कहीँ पहुंचने में, इसलिये गाड़ी चलते वक़्त ज्यादा ध्यान देना पड़ता है। खैर अब हमारा सैन फ़्रांसिस्को कई बार आना जाना होता रहेगा तो तस्वीरों की कमी भी जल्दी पूरी कर देंगे। राग |
Sunday, May 06, 2007
सभी चिट्ठाकारों से विनती
कृपया अपने लेख जस्टिफाई ना किया करें। फायरफॉक्स में नहीं पढ़ा जाता। मुझे मालूम है कि एक एड ऑन से इस समस्या को दूर किया जा सकता है, लेकिन तीन चार चिट्ठों के लिए एसा करना मुझे नहीं ठीक लगता। वैसे भी मैं अपने फायरफॉक्स में कम से कम एक्सटेंशन रखना चाहता हूँ, ताकि वो जल्दी चालू हो सके। |
Sunday, April 29, 2007
वर्जीनिया टेक की घटना और मेरे अनुभव-2
मैंने अपनी पिछली पोस्ट में वर्जीनिया टेक में हुई घटना से सम्बंधित अपने कुछ अनुभव आपसे बांटे थे। इन कई अनुभवों में से एक अनुभव था मीडिया से। |
Friday, April 27, 2007
पी टी एस डी: पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर
पी टी एस डी यानी "पोस्ट ट्रोमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर।" हो सकता है कि आपमें से कईयों ने यह शब्द या परिभाषा पहली बार सुनी हो। इसका सीधा सा अर्थ है, किसी ट्रॉमा यानी किसी दर्दनाक हादसे के बाद होने वाला मानसिक दबाव या असंतुलन। वर्जीनिया टेक में हाल में हुई घटना हमारे जैसे कई छात्रों और शिक्षकों के लिए दर्दनाक हादसा है और हम पी टी एस डी के अलग अलग प्रभाव देख हैं। |
Tuesday, April 24, 2007
वर्जीनिया टेक की घटना और मेरे अनुभव-1
अभी हाल में वर्जीनिया टेक में हुए नरसंहार ने हम लोग को ऊपर से नीचे तक हिला दिया। इस घटना ने बहुत सारे अनुभव भी दिए। इस घटना ने जो सिखाया उसे शायद सीखने में इन्सान कि उम्र निकल जाये, और ये ज़रूरी है कि उसकी उचित मीमांसा भी कि जाये। पहले दो दिन तक दिमाग झटके में ही रहा और कुछ महसूस नहीं हुआ। फिर धीरे धीरे जैसे मृत लोगों के बारे में खबरें आने लगीं, दिल में बेबसी, दुःख, ग़ुस्सा, अपराधबोध और ना जाने क्या क्या भावनाएं आयीं। घटना के अलावा कई अनुभव और भी हुए, जिसमें खास तौर पर ऐसे समय पर मानव ह्रदय कि कोमल भावनाओं को देखा, मीडिया का गिद्ध स्वाभाव देखा, और कई लोगों कि मूर्खता भी देखी। |
Monday, April 16, 2007
वर्जीनिया टेक में गोलीबारी: ३३ हत, कई आहत
वर्जीनिया टेक की ड्रिल फील्ड पर कुछ देर पहले करीब २०-२५००० होकीज़ (यानी वर्जीनिया टेक के छात्र, प्राध्यापक, स्टाफ और अलेम्नाई ) और अन्य लोगों ने मोमबत्तियां जलाईं गईं और मिलकर अपनी एकता का आह्वान किया। ड्रिल फील्ड से एक ताज़ा चित्र। हत छात्रों एक और छात्र का नाम है रीमा साहा जो कि नाम से भारतीय मूल कि लगती हैं, मगर इसके अलावा कोई और जानकारी इनके बारे में अभी उपलब्ध नहीं है। रीमा प्रथम वर्ष की छात्रा हैं जो की वॉशिंग्टन के पास सेंटरविल की रहने वाली हैं। --रीमा के बारे में ताज़ा जानकारी ये बताती है की वे मूलतः इजराइल से थीं। भारतीय दूतावास से अधिकारी वर्जीनिया टेक में। वे भारतीय छात्रों को ये बताना चाहते हैं कि वे कैसे भारतीय छात्रों की मदद कर सकते हैं। ये मुद्दा अलग है कि वे कभी भी अपना फोन नहीं उठाते, बात और मदद तो दूर कि बात है। भारतीय छात्रा मीनल पांचाल की मृत्यु की पुष्टि। हत्यारे कि पहचान के दक्षिण कोरिया के छात्र के रुप में की गयी है। ज्यादा जानकारी यहाँ उपलब्ध है। कुछ हत लोगों के नाम घोषित कर दिए गए हैं, जिन्हे आप यहाँ देख सकते हैं। मेरे विभाग कि एक छात्रा जूलिया प्राइड कि भी इसी घटना में मृत्यु हो गयी है। मारे जाने वालों में एक प्रोफेसर डॉ॰ जी वी लोगानेथान भारतीय हैं। सिविल इंजीनियरिंग कि एक कक्षा जो मैंने तीन साल पहले ली थी -इन्ही प्रोफेसर के द्वारा- उसमें लगभग सभी मारे गए। एक भारतीय छात्र के गायब होने कि खबर कई स्रोतों से सुनने में आयी है , लेकिन अभी तक कोई पक्की खबर नही है। ताज़ा खबर: अभी तक मारे जाने वाले लोगों कि संख्या ३३ बताई गयी है। ३१ लोग इंजीनियरिंग हॉल और २ लोग छात्रावास में मारे गए। जैसा आपमें से कई जानते हैं कि मैं वर्जीनिया टेक में पीएच.डी कर रहा हूँ। १६ अप्रैल को किसी अज्ञात बंदूकधारी या किन्हीं अज्ञात बंदूकधारियों ने दो अलग अलग जगहों पर कई लोगों कि गोली मार कर हत्या कर दी। पहली घटना एक छात्रावास में करीब सवेरे ७:१५ बजे हुई, और दूसरी घटना एक इंजीनियरिंग हॉल में करीब ९:३० बजे के बाद हुई। फिलहाल इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि ये घटनाएं जुड़ी हैं या अलग अलग और अभी तक सिर्फ कयास ही लगाए जा रहे हैं। अभी तक कि पक्की खबर ये बता रही है कि करीब ३२ लोगों कि मृत्यु हो चुकी है, जिनमें एक बंदूकधारी भी शामिल है। अमरीका के इतिहास में ये अभी तक की सबसे बड़ी घटना बतायी जा रही है। मुझे चूंकि आज कालेज देर से जाना था और जब तक मैं जाता, इस बारे में खबर आ चुकी थी, इसलिये मैं सुरक्षित घर पर ही रहा। मेरे मित्रों में भी सभी ताज़ा जानकारी मिलने तक सुरक्षित हैं। इंजीनियरिंग हॉल में कई भारतीय भी पढ़ते हैं, किन्तु जिस कक्षा में ऐसा हुआ वहाँ के बारे में कोई खास जानकारी फिलहाल नहीं है। जैसे जैसे जानकारी मिलेगी मैं इसी पन्ने पर बताता रहूँगा। हत्या के कारण के बारे में कई कयास लगाए जा रहे हैं, जिनके बारे में अभी बात करना जल्दबाजी होगी। नीरज दीवान जी के सौजन्य से मैंने इंडिया टीवी पर भी इस बारे में सीधी बातचीत की, जिसके बारे में बाक़ी जानकारी वही देंगे। आज रात को मैं इससे सम्बंधित शोक सभा में भी जाऊंगा। राग |
Sunday, April 15, 2007
ग्लोबल वार्मिंग: कुछ सत्य कुछ मिथक
जैसा आपमें से कईयों ने देखा है कि परिचर्चा में मैंने एक विषय शुरू किया जिसमें कई लोगों ने ये बातें कहीं कि वे पर्यावरण बचाने में क्या योगदान करते हैं, और क्या करना चाहते हैं। ग्लोबल वार्मिंग जैसे मुद्दे पर कुछ मिथक और कुछ शंकाएं भी हैं तो मुझे लगा कि मैं इस मुद्दे पर कुछ अपने विचार रखूँ। |
Friday, April 13, 2007
मादक शनिवार
मित्रों इस बार वर्जीनिया टेक के भारतीय कार्यक्रमों में हिंदी सिनेमा के कुछ बेहतरीन मादक और मदहोश करने वाले गाने सुनाऊंगा। आशा है कि आपको ये गाने प्रसन्न करेंगे। ज्यादा जानकारी के लिए देखें। |
Tuesday, April 10, 2007
सेक्स श्श्श्श्श्श्श्श
अरे अगर सेक्स का ज्ञान दिया तो बच्चे बिगड़ ना जायेंगे। उनका चरित्र खराब हो जाएगा, शायद वे आपस में ही सेक्स करने लगे। |
Friday, April 06, 2007
आई पी सी सी की ताज़ा रिपोर्ट - खतरनाक स्थिति
अब आई पी सी सी की ताज़ा रिपोर्ट भी आ गयी है। रिपोर्ट अगर आपने नहीं पढ़ी है तो रिपोर्ट की मुख्य बात ये है कि ग्लोबल वार्मिंग का सबसे ज्यादा असर गरीब देशों पर होगा। रिपोर्ट साफ साफ यह कहती है कि उत्तर भारत इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाली जगहों में से एक होगा. अब ग्लोबल वार्मिंग से प्रभावित होने वाले लोगों कि संख्या लाखों या करोड़ों में नहीं बल्कि अरबों में होगी. जो अब तक सो रहे हैं उन्हें ये एहसास होना चाहिऐ कि आज के बच्चे, क्या शायद हम और आप भी अच्छे वातावरण में सांस ना ले सकें। |
Thursday, April 05, 2007
परिचर्चा में चर्चा कीजिये पर्यावरण को दिए अपने योगदान की
हिंदी परिचर्चा में मैंने एक विषय बनाया है जिसमें आप पर्यावरण को दिए अपने व्यक्तिगत सहयोग के बारे में अपना अनुभव बाँट सकतें हैं। इस चर्चा में आप उन सब बातों का उल्लेख करें जिससे आप को लगता है कि आप पर्यावरण को सहयोग दे रहे है। इससे ना सिर्फ ये पता चलेगा कि व्यक्तिगत स्तर पर हम पर्यावरण के लिए कितने जागरूक हैं, बल्कि पढने वाले लोगों को भी कुछ नया करने कि प्रेरणा मिलेगी। इस छोटे से प्रयास से शायद हम पृथ्वी का कुछ थोडा सा भला कर सकतें हैं। |
Tuesday, April 03, 2007
चलो नेतागिरी करें
दो दिन पहले उप्र के चुनाव कि कवरेज सुन रह था बीबीसी में. जी उकता गया सच में. सोचा कि जिन मुद्दों को मैं थोड़ा सा भी महत्व देता हूँ, उसकी क्या कीमत है आज?
चलो नेतागिरी करें तुम जाती का मुद्दा उठाओ, हम गरीबी का उठाते हैं तुम मंदिर बनाओ, हम कहीँ मदरसा खङा करवाते हैं तुम जुर्म कि गिनती कराओ हम गबन कि करवाते हैं चलो नेतागिरी करतें हैं अब क्या करना इस बात से कि किसान मर रहे हैं सरपंच से कह कर उनके वोट तो पड़ ही जाते हैं अब क्या करना इस बात से कि गंगा गन्दी हो रही है कुम्भ में नहाते वक्त पानी ही तो छोड़ना होगा बाँध से और फिर हो जाएगा हर हर गंगे क्या मतलब इस बात से कि सूख रही गंगा, नहीं कर पाएगी भरण पोषण इस सूखते हुए राज्य का। बंगलादेश से मँगा लेंगे कुछ और वोटर बिजली अब कोई मुद्दा नहीं सबके पास जनरेटर है नहीं तो एक इनवर्टर है वैसे एक घंटे भी रहेगी बिजली तो अमिताभ प्रचार कर ही देगा भ्रष्टाचार कोई मुद्दा रहा नहीं एक ही तो हम्माम है सब ही हैं इसमें नंगे हम राजा तो तुम्हारी जांच तुम राजा तो हमारी जांच यह खेल भी बड़ा निराला है सबको मंत्रमुग्ध कर डाला है फिर गद्दी पर आएंगे कुछ और भी खेल दिखायेंगे आओ वोट माँग के आते हैं, कुछ और भी रंग दिखाते हैं चलो नेतागिरी फैलाते हैं राग |
Monday, April 02, 2007
सन् २०३० के बाद क्या गंगा बचेगी?
कल इस बारे में समाचार देखा कि २०३० तक हिमालय के हिमनद अपने आकार के १/५ ही रह जायेंगे। वैसे इस बारे में पहले भी को चेतावनियाँ आ चुकी हैं मगर यह ताज़ा रिपोर्ट कहती है कि इन हिमनदों के घटने का स्तर बहुत तेजी से बढ़ रहा है और अगर पृथ्वी यूं ही गर्म होती रही तो २०३० तक यह हिमनद बुरी तरह घट जायेंगे। यदि आपको लगता है कि आपको कुछ करना चाहिऐ तो पढिये टाइम का ताज़ा अंक और कुछ प्रेरणा लीजिये। लोगों को और जागरूक बनाइये, कृपण होइये, बिजली बचाइए, मगर कैसे भी करके इस पृथ्वी को बचाइए। |
Tuesday, March 13, 2007
आओ जज करें
कई दिन से इस मुद्दे पर लिखने की सोच रहा था, एक दो बार इसी समस्या से पाला पड़ा तो सोचा अब मन की भड़ास निकाल ही दूँ। इंसान की शायद ये सबसे बड़ी कमियोॆ में से एक है, किसी व्यक्ति को, किसी वस्तु को तुरंत जज कर देना। इस हरकत के हममें से सभी शिकार हैं और जल्दी कोई भी मानेगा भी नहीं । |
एसी रही हमारी होली।
होली तो इस बार भी बड़ी जम कर खेली हर बार की तरह। सोचा आपको भी वर्चुअल होली खिला दें। हमारी श्रीमती जी इस बार हमारे साथ नहीं थी, तो हम यहाँ अकेले ही थे, और बिना दाढ़ी बनाए घूम सकते थे। बाकि के चित्र यहाँ हैं। लोग आते गए और होली खेल कर खा पी कर जाते गए, इसी खेलाखेली में जितने चित्र खींच सका, प्रस्तुत हैं। |
Saturday, March 10, 2007
आरक्षण के मुद्दे के जवाब पर कुछ जवाब
प्रदीप जी ने मेरे पिछले लेख पर कुछ टिपण्णी की। प्रदीप जी पहले तो इतनी लंबी टिपण्णी का धन्यवाद कि आपने अपना पूरा पक्ष सामने रखा है। मैं बड़ी पोस्ट नहीं लिख पाता, तो कोशिश करूंगा कि छोटे में अपनी बात कह सकूं। |
भारत पुनर्निमाण दल की आने वाले चुनावों कि तैयारी
संपादित: ये घोषणा छपी है भापुद के जालस्थल पर उप्र के चुनावों के संदर्भ में। |
Friday, March 09, 2007
आरक्षण - पुनः बढ़ती बहस
चूंकि अब खबर थोड़ी पुरानी होती जा रही है इसलिये इस मुद्दे पर बहस भी कम होती जा रही है, किन्तु आरक्षण का मुद्दा आज भी वहीँ पर है जहाँ करीब ६-७ महिने पहले था। सर्वोच्च न्यायालय में इस पर बहस अब पूरी हो चुकी है और न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रखा हुआ है। |
Thursday, March 08, 2007
ब्लॉगर पर हिंदी का ट्रान्सलिट्रेशन टूल प्रयोग का prayas
हाँ भैया, तो हम ब्लॉगर का ट्रान्सलिट्रेशन टूल का प्रयोग करके ये ब्लॉग पोस्ट कर रहे हैं। मज़ा आ गया क़सम से इससे लिखने में। ये तो सच में बड़ी मजेदार स्टाइल है, और कंप्यूटर में किसी सेटिंग को बदलने कि भी कोई ज़रूरत नहीं है। यानी कि अब किसी भी कंप्यूटर पर बैठ कर इसे इस्तेमाल किया जा सकता है। |
Sunday, February 18, 2007
एक शाम उस्ताद शफातुल्लाह खान के साथ
असोसिएशन फॉर इंडियाज़ डेवेलपमेंट (Association for India's Development) के वर्जीनिया टेक विभाग ने ये शाम आयोजित की थी। तबले और सितार की संगति में बिताई ये शाम निश्चित ही एक बेहतरीन अनुभव रही। |
Friday, February 16, 2007
भारत पुनर्निर्माण दल के नेताओं से मुलाकात
इस शनिवार को वर्जीनिया टेक के भारतीय कार्यक्रम में मैं आप लोगों की मुलाकात कराऊँगा एक नये राजनैतिक दल "भारत पुनर्निर्माण दल" के नेताओं से। जैसा कि मैंने अपने चिट्ठे में पहले इस दल के बारे में आप लोगों को बताया था, ये भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों के मेधावी छात्र हैं जिनकी रुचि राजनीति में आ कर देश के लिए कुछ करने की है। आपसे अनुरोध है कि कार्यक्रम को सुनें और इन मेधावी छात्रों का हर तरह से मनोबल बढ़ाएं। कार्यक्रम अमरीका के पूर्वी समय के अनुसार दोपहर १:०० बजो से २:३० बजे तक, और भारत के रात ११:०० बजे से सुबह १:०० बजे तक सीधा प्रसारित किया जाएगा। सुनने के लिए इस कड़ी पर जाएँ और "Listen Online" पर चटका लगाएँ। |
Wednesday, February 14, 2007
मुझे चाय भी नहीं बनानी आती...
जाने कितनी बार एसा सुना है। अमरीका में भारत से आने वाले कई छात्रों के मुँह से एसा सुनने को मिलता है। भारत में भी कई बार जान पहचान में एसा सुना है। सोच कर लगता है कि हमारे माँ बाप ने बड़ा भला किया जो हमें घर के सारे काम कराए और सिखाए। मेरा मानना है कि जीवन में जितना खाना खाना आना जरूरी है, उतना ही खाना बनाना भी। इस लेख में मैं इस साधारण किंतु महत्वपूर्ण मुद्दे की तरफ ध्यान दिलाना चाहूँगा। |