दो दिन पहले उप्र के चुनाव कि कवरेज सुन रह था बीबीसी में. जी उकता गया सच में. सोचा कि जिन मुद्दों को मैं थोड़ा सा भी महत्व देता हूँ, उसकी क्या कीमत है आज?
चलो नेतागिरी करें तुम जाती का मुद्दा उठाओ, हम गरीबी का उठाते हैं तुम मंदिर बनाओ, हम कहीँ मदरसा खङा करवाते हैं तुम जुर्म कि गिनती कराओ हम गबन कि करवाते हैं चलो नेतागिरी करतें हैं अब क्या करना इस बात से कि किसान मर रहे हैं सरपंच से कह कर उनके वोट तो पड़ ही जाते हैं अब क्या करना इस बात से कि गंगा गन्दी हो रही है कुम्भ में नहाते वक्त पानी ही तो छोड़ना होगा बाँध से और फिर हो जाएगा हर हर गंगे क्या मतलब इस बात से कि सूख रही गंगा, नहीं कर पाएगी भरण पोषण इस सूखते हुए राज्य का। बंगलादेश से मँगा लेंगे कुछ और वोटर बिजली अब कोई मुद्दा नहीं सबके पास जनरेटर है नहीं तो एक इनवर्टर है वैसे एक घंटे भी रहेगी बिजली तो अमिताभ प्रचार कर ही देगा भ्रष्टाचार कोई मुद्दा रहा नहीं एक ही तो हम्माम है सब ही हैं इसमें नंगे हम राजा तो तुम्हारी जांच तुम राजा तो हमारी जांच यह खेल भी बड़ा निराला है सबको मंत्रमुग्ध कर डाला है फिर गद्दी पर आएंगे कुछ और भी खेल दिखायेंगे आओ वोट माँग के आते हैं, कुछ और भी रंग दिखाते हैं चलो नेतागिरी फैलाते हैं राग |
Tuesday, April 03, 2007
चलो नेतागिरी करें
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6 टिप्पणियाँ:
बहुत अच्छा अनुराग भाई
मजा आ गया
सही कह रहे हैं आप,बहुत अच्छे!
घुघूती बासूती
सही कह रहे हो, चलो कर ही ली जाये एकबार नेतागिरी..अनुराग तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं. :)
सही बात उठाई है आपने। लेकिन बातें उठाकर भी क्या फ़ायदा है?
अच्छी कविता लिखी। वाह! बहुत अच्छे!
tarifay kabil hai janaab ....one of the best i ever read hindi kavita..
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