Sunday, April 29, 2007

वर्जीनिया टेक की घटना और मेरे अनुभव-2

मैंने अपनी पिछली पोस्ट में वर्जीनिया टेक में हुई घटना से सम्बंधित अपने कुछ अनुभव आपसे बांटे थे। इन कई अनुभवों में से एक अनुभव था मीडिया से।

जितना मीडिया वर्जीनिया टेक में इकट्ठा हुआ था उतना जिंदगी में कभी नहीं देखा और ना देखने की इच्छा ही है। खैर समाचार देने के लिए तो लगातार प्रेस कॉन्फेरेन्स हो रही थी, मगर रिपोर्टरों को समाचार तो मालूम हो ही चुका था, अब उनको टीवी चैनल पर दिखाने के लिए कुछ भावनाएं चाहिऐ थीं। अब भावनाएं बटोरने के लिए उन्हें छात्रों से बात करनी थी, और अगर छात्र ने ये घटना खुद आंखों से देखी हो या उसका कोई सगा इस घटना में मारा गया हो तो बात ही क्या।

जिनके अच्छे जानने वालों कि इस घटना में मृत्यु हुई थी उसमें एक हम भी थे। लिहाज़ा रिपोर्टरों ने हमें खोज ही लिया। वैसे तो रोक रोक कर कुछ और रिपोर्टर भी सवाल करते थे, लेकिन कुछ खास अनुभवों कि बानगी देखिए।

१ घटना के दूसरे दिन (मंगलवार) मैं डॉ॰ लोगानाथान के घर फिर गया करीब ११ बजे सबेरे। मैंने डॉ॰ लोगानाथान कि पुत्री से बात भी की। वहाँ पता चला कि सबेरे ७ बजे से रिपोर्टर वहाँ दरवाजे पर जमा थे श्रीमती लोगानाथान से बात करने के लिए। उन लोगों को जबरदस्ती वहाँ से भगाया गया था।

२ घटना के दूसरे दिन वर्जीनिया टेक के लगभग सभी छात्र और शहर के बाक़ी लोग एक सभा में जा रहे थे। कई रिपोर्टर भी जोरदार रिकार्डिंग करने के लिए कैमरा सेट कर रहे थे। दो रिपोर्टर आस पास में कहते पाए गए कि इस जगह पर तो कोई रो नहीं रहा, चलो आगे देखते हैं।

३ स्टेडियम में चल रही सभा के बीच में एक रिपोर्टर आयी और मुझसे साक्षात्कार के लिए कहा, मैंने उनसे कहा कि सभा के बाद मिलना। बाहर जाने पर दो रिपोर्टर दिखीं। पहले एनडीटीवी वाली ने पकड़ा। उसने मुझे डॉ॰ लोगानाथान के बारे में कुछ कहने को कहा। मैंने जो पता था बता दिया। शायद वो सन्तुष्ट नहीं हुई, उसने कहा कि और बताओ, मैंने कैमरे पर ही बोला जितना बता था बोल दिया, अब झूठ नहीं बोलूँगा, वो आपका काम है। उसके बाद सी एन एन - आई बी एन वाली मेरा इंतज़ार कर रही थी। एन डी टी वी वाली ने बोला कि जो मुझे बताया, वो उसको नही बताना, मैंने खिसिया कर कहा कि मेरी बातों का भी तुमने कॉपिरइट कर रखा है क्या? खैर फिर सी एन एन -आई बी एन वाली ने मेरा साक्षात्कार लेना शुरू किया और डॉ॰ लोगानाथान के बारे में पूछा। मैंने फिर वही बताया जो मुझे पता था। फिर उसने मीनल के बारे में पूछा। अब मीनल को मैं व्यक्तिगत रुप से नहीं जानता था, और उस समय तक उसकी मृत्यु कि खबर की पुष्टि भी नहीं हुई थी। तो रिपोर्टर ने कहा कि आपको क्या लगता है, मीनल को क्या हुआ होगा? मैंने कहा कि वो सुरक्षित होगी। उसने दो तीन बार जोर देकर इस बारे में पूछा, ताकि मैं ये कहूं कि शायद वो नहीं रही। अब जिस बारे में नहीं पता उस बारे में क्यों बकवास करूं।

४ अब तक एन डी टी वी और सी एन एन - आई बी एन में एक ज़ोरदार अघोषित प्रतियोगिता थी की मीनल कि मौत कि खबर कौन पहले बताता है। (यहाँ ये बता दूं कि सी एन एन - आई बी एन वाली पहले एन डी टी वी में काम करती थी)। खैर सी एन एन - आई बी एन वाली को एन डी टी वी वाली से पहले खबर हो गयी और चैनल पर ये खबर छा गयी। इसी समय एन डी टी वी वाली के साथ मेरा मित्र था, और एन डी टी वी वाली को उसके बॉस का फ़ोन आया, और एकदम भद्दी भाषा में उसे लताड़ा गया कि कैसे सी एन एन - आई बी एन वाली को पहले खबर मिली मीनल के बारे में। फ़ोन करने वाले की आवाज़ इतनी तेज़ थी कि मेरे मित्र ने लगभग सारी बात सुनी और रिपोर्टर को लगभग गिड़गिड़ाते हुए देखा और सुना।

५ उसके बाद तो जहाँ देखो वहाँ एन डी टी वी वाली नज़र आने लगी। पता चला कि वो मंगलवार सुबह चार बजे ब्लैक्बर्ग पहुंची और अपने हिन्दुस्तानी होने का वास्ता दे कर एक मेरे एक मित्र के घर में लगभग जबरदस्ती आ गयी थी। किसी और को उसने कहा की १०० डॉलर दूँगी अगर मुझे उस जगह पर कार से चक्कर पर लगावाओगे जहाँ ये घटना हुई थी। उसको मैंने एक समाजसेवी संस्था द्वारा उपलब्ध कराया गया मुफ़्त खाना खाते देखा जो कि मृतक के मित्रों और परिवारवालों के लिए था।

६ बुधवार को दिन में एक जगह पर जहाँ मृतकों कि याद के लिए लोग फूल रख रहे थी और मोमबत्तियां जला रहे थी वहाँ रिपोर्टरों का व्यवहार तो देखने वाला था। मैं जब फूल रखने गया तो बस एक दो सेकंड के समय में अगल बगल से करीब ६ कैमरा सर पर सवार हो गए। मैंने कहा यार जीने दो और जाओ यहाँ से, तो उसमें एक चला गया बाक़ी पांच सर पर सवार ही रहे (वे सब कई देशों के थे, और एक दो शायद ठीक से समझे भी ना हों)। उसी मैदान पर जहाँ लोग याद में मोमबत्तियां जला रहे थी वहीँ कुछ समूह आपस में बैठ कर बात या प्रार्थना कर रहे थे। कैमरा वाले समूह के बीच में माइक लटका कर उनकी बातें रिकार्ड करने का प्रयास कर रहे थे।

७ इतनी देर में वौइस् ऑफ अमेरिका वाले आ गए जो आज तक के लिए कार्यक्रम तैयार करते हैं। मैं फिर फँस गया। छूटते ही मैंने उनसे बोला कि ये तो सबसे घटिया चैनल है (ऐसा मैंने सी एन एन - आई बी एन वाली को भी उसके चैनल के लिए बोला था), तो उन्होंने कहा कि वो खुद ऐसा मानते हैं। खैर वे लोग व्यवहारकुशल थे और बतिया के फिर वहीँ ले गए जहाँ लोग मृतकों कि याद में फूल दे रहे थे और बडे बडे साइनबोर्डों पर मृतकों की यादों में कुछ लिख रहे थे। आज तक वाले ने कहा यार तुम फिर कुछ लिखो और हिन्दी में लिखो, ज़रा फील अच्छा आएगा। अब मैंने क्या जवाब दिया होगा आप कल्पना कर सकतें हैं।

८ जहाँ तक हत्यारे के विडियो वाली बात है जो आपमें कई लोगों ने बृहस्पतिवार को इन्टरनेट पर देखा होगा, वो मीडिया का सबसे असंवेदनशील रवैया था। मुझे बार बार यही लगता है कि कितनी चालाकी से हत्यारे ने मीडिया का इस्तेमाल करके हम लोगों को बेवक़ूफ़ बनाया।

खैर ये रहे मेरे कुछ अनुभव मीडिया को लेकर, इसमें बहुत सारी बातें मैंने छोड़ दीं क्यूंकि मैंने वो दूसरों या तीसरों से सुनी थी।

अब इसके बाद में बात करुंगा कुछ संस्कृति की, इस घटना के बाद यहाँ कैसी सभाएं हुईं, या होती हैं और लोगों ने किस प्रकार एक दूसरे कि मदद की और इस सब के बीच में मैंने क्या अनुभव किया।

राग

Friday, April 27, 2007

पी टी एस डी: पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर

पी टी एस डी यानी "पोस्ट ट्रोमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर।" हो सकता है कि आपमें से कईयों ने यह शब्द या परिभाषा पहली बार सुनी हो। इसका सीधा सा अर्थ है, किसी ट्रॉमा यानी किसी दर्दनाक हादसे के बाद होने वाला मानसिक दबाव या असंतुलन। वर्जीनिया टेक में हाल में हुई घटना हमारे जैसे कई छात्रों और शिक्षकों के लिए दर्दनाक हादसा है और हम पी टी एस डी के अलग अलग प्रभाव देख हैं।

कोई भी हादसा किसी पर कितना मानसिक दबाव बाना सकता है, ये समय, परिस्थितियों और व्यक्ति के व्यक्तित्व पर निर्भर करता है। हादसा छोटे समय का हो सकता है जैसे, बम धमाका, कोई दुर्घटना, किसी की मृत्यु, या बलात्कार। हादसा लंबे समय तक चलने वाला भी हो सकता है, जैसे सीमा पर होने वाली रोज कि गोलाबारी, लंबे समय तक चलने वाली प्रतारणा या बलात्कार, या लंबे समय तक चलने वाली बीमारी।

ये कैसे पता लगे कि कोई व्यक्ति पी टी एस डी से जूझ रह है, इस की क्या निशानियाँ हैं, उसे कब, कितनी और कैसे मदद चाहिऐ? इन सब सवालों के जवाब आपको मिलेंगे मेरे रेडियो शो पर जो वर्जीनिया टेक के रेडियो पर प्रसारित होगा। रेडिओ कार्यक्रम की मेहमान होंगी डॉ॰ कीलिंग और जोतिका जगसिया। रेडिओ कार्यक्रम, पूर्वी समयानुसार अप्रैल २८ को १:०० बजे और भारतीय समयानुसार अप्रैल २८ को रात्री १०:३० बजे प्रसारित होगा और उसे इन्टरनेट पर सुनने के लिए यहाँ जाएँ और "Listen Online" पर चटका लगाएं। ज्यादा जानकारी के लिए यहाँ चटका लगाएं

राग

Tuesday, April 24, 2007

वर्जीनिया टेक की घटना और मेरे अनुभव-1

अभी हाल में वर्जीनिया टेक में हुए नरसंहार ने हम लोग को ऊपर से नीचे तक हिला दिया। इस घटना ने बहुत सारे अनुभव भी दिए। इस घटना ने जो सिखाया उसे शायद सीखने में इन्सान कि उम्र निकल जाये, और ये ज़रूरी है कि उसकी उचित मीमांसा भी कि जाये। पहले दो दिन तक दिमाग झटके में ही रहा और कुछ महसूस नहीं हुआ। फिर धीरे धीरे जैसे मृत लोगों के बारे में खबरें आने लगीं, दिल में बेबसी, दुःख, ग़ुस्सा, अपराधबोध और ना जाने क्या क्या भावनाएं आयीं। घटना के अलावा कई अनुभव और भी हुए, जिसमें खास तौर पर ऐसे समय पर मानव ह्रदय कि कोमल भावनाओं को देखा, मीडिया का गिद्ध स्वाभाव देखा, और कई लोगों कि मूर्खता भी देखी।

सबसे महत्वपूर्ण भावना रही वो ये कि इस घटना ने जीवन कि क्षणभंगुरता पर फिर भरोसा दिला दिया। मैंने अपने रिश्तेदारों में दादा, दादी और नाना कि मृत्यु अपने सामने देखी और इनके अन्तिम संस्कार में भी गया हूँ। काफी पहले हुए इन अनुभवों ने मुझे थोड़ा मज़बूत बनाया है। लेकिन तीन साल पहले मेरे कई कम उम्र रिश्तेदारों में कुछ कि मृत्यु हुई, जिसने जीवन पर भरोसा कम किया था। उसके बाद शादी हुई और जीवन के आनन्द में फिर भूल गया, "जीवन कि क्षणभंगुरता।"

इस घटना ने झकझोर दिया, बार बार दिल में यही ख़याल आता रहा कि क्या सोच के निकले होंगे घर से लोग सबेरे सबेरे, कि आज ये पढ़ना है, ये मीटिंग है, यहाँ लंच है, इससे मिलना है, शाम को सिनेमा देखना है और ना जाने क्या क्या क्या। एक बार भी दिल में ये ख़याल किसी के नहीं होगा कि ऐसा हो सकता है। सब पढ़ने वाले, समझदार, शांतिप्रिय लोग।

कई बार दिल में ये ख़याल किया कि मरने का क्या अर्थ है, क्या इसके लिए इन्सान को तैयारी करनी चाहिऐ, अगर करनी चाहिऐ तो क्या? जैसे जैसे मृतकों में जान पहचान वालों के नाम आने लगे, शोक बढ़ता गया, और इन सवालों के जवाब में दिमाग खराब होता गया। बुधवार को नोरिस २०६ कमरे में मृत हुये लोगों कि एक शोक सभा में गया। उस कमरे में घटना के समय १४ लोग थे। ४ छात्र घायल होकर भी बच गए, एक छात्र उस दिन कालेज नहीं आया, और एक छात्र ने एक हफ्ते पहले ही वो कक्षा छोड़ दी थी।

उन मृत लोगों में डॉ॰ लोगानाथान, और मेरे विभाग कि एक छात्रा भी थी, जिससे मैंने जिन्दी में पहली बार शुक्रवार को बात की थी। बार बार यही सोचता रहा कि उस दिन भी मेरी बात क्यों हुई उस लड़की से, इसके पीछे क्या दैवीय योग रहा होगा? शोक सभा में कई लोगों ने अपने संस्मरण सुनाये, डेढ़ घंटे कि वो सभा भावनात्मक रुप से बहुत मुश्किल हो गयी थी। जब मैंने इतने लोगों को संस्मरण सुने तो फिर बहुत कुछ सोचने पर मजबूर हो गया, मगर क्या, ये बयां कर पाना मुश्किल है।

दिन का अंत होते होते, कम से कम ऎसी तीन शोक सभाओं में शिरकत कर ली थी। अन्तिम सभा एक मंदिर में हुई जहाँ कई भारतीय छात्र इकट्ठा हुए और उन्होने कुछ समय भजन में बिताया। इस सभा में कुछ मित्रों ने मीनल और डॉ॰ लोगानाथान के बारे में बात की। उस भावनात्मक रुप सी कठिन सभा में कुछ उद्गार मेरे ह्रदय से भी निकले, जिनको मैं लगभग वैसा का वैसा यहाँ प्रस्तुत कर रह हूँ।

"डॉ॰ लोगानाथान एक बेहतरीन प्रोफेसर थे, उन्होने मुझे एडवांस्ड हाइड्ररोलॉजी पढ़ाया हैपढ़ाने के प्रति उनका समर्पण कक्षा के हर एक छात्र को महसूस होता थाअपने विषय के बारे में उनको बहुत ही सूक्ष्म स्तर कि जानकारियां थीपढ़ाने का उनका एक अलग ही तरीका था, और आप उनकी कक्षा में कभी अलग थलग नहीं महसूस कर सकतेउनका इस बात पर पूरा जोर रहता था कि छात्रों को विषय पूर्णतः समझ आयेडॉ॰ लोगानाथान जैसे व्यक्ति सदैव अपने छात्रों, मित्रों, और रिश्तेदारों की प्रेरणा में जीवित रहते हैंआज मैं भी जब पढ़ाता हूँ तो पार्श्व में डॉ॰ लोगानाथान जैसा पढ़ाने कि इच्छा मन में रहती हैउनकी ही तरह अपने विषय को पूर्णतः समझने कि इच्छा रहती है

मीनल के बारे में जैसा कि आप लोगों में से कुछ ने बताया (मुझसे पहले जिन लोगों ने उसके बारे में बताया) की उसकी खास बात उसके चहरे पर रहने वाली मुस्कान थी, चाहे कोई भी परेशानी होमीनल आपके चहरे पर रहने वाली मुस्कान की प्रेरणा के रुप में सदा आपके ह्रदय में रहेगीयही जीवन की निरंतरता हैजीवन के सफ़र में खो चुके लोगों की प्रेरणा दायक बातों को अपने ह्रदय में रख कर आप मृतक की आत्मा को सदा शांति प्रदान करेंगे।"

कहना और भी बहुत कुछ चाहता था। इन लोगों के बारे में जो कहा वो बिल्कुल नाकाफी था, मगर और कह नहीं पाया। शनिवार को डॉ॰ लोगानाथान कि शोक सभा में गया जहाँ उनके महान जीवन का जश्न मनाया गया। ६०० से ऊपर लोगों की सभा में अपनी भावनाओं को काबू कर पाना मुश्किल हो गया था। उस सभा के बारे में रीडिफ़ में छपा भी है। शनिवार को ही बाल्टिमोर में मीनल का अन्तिम संस्कार था, मगर मैं उसमें नहीं जा पाया, क्यूंकि मैं ब्लैक्स्बर्ग में डॉ॰ लोगानाथान कि शोक सभा में था। इस दर्दनाक घटना को एक हफ्ते हो चुके, मगर दिल अभी भी अशांत है। कल जा कर कालेज द्वारा उपलब्ध कराए गए किसी काउन्सेलर के पास जाऊंगा।

इस घटना ने जो बहुत सी बातें सिखाईं हैं उनमें से कई पर अभी बहुत कुछ लिखना है, खास कर मीडिया के गिद्धपने पर।

राग

Monday, April 16, 2007

वर्जीनिया टेक में गोलीबारी: ३३ हत, कई आहत

वर्जीनिया टेक की ड्रिल फील्ड पर कुछ देर पहले करीब २०-२५००० होकीज़ (यानी वर्जीनिया टेक के छात्र, प्राध्यापक, स्टाफ और अलेम्नाई ) और अन्य लोगों ने मोमबत्तियां जलाईं गईं और मिलकर अपनी एकता का आह्वान किया। ड्रिल फील्ड से एक ताज़ा चित्र।



हत छात्रों एक और छात्र का नाम है रीमा साहा जो कि नाम से भारतीय मूल कि लगती हैं, मगर इसके अलावा कोई और जानकारी इनके बारे में अभी उपलब्ध नहीं है। रीमा प्रथम वर्ष की छात्रा हैं जो की वॉशिंग्टन के पास सेंटरविल की रहने वाली हैं।
--रीमा के बारे में ताज़ा जानकारी ये बताती है की वे मूलतः इजराइल से थीं।

भारतीय दूतावास से अधिकारी वर्जीनिया टेक में। वे भारतीय छात्रों को ये बताना चाहते हैं कि वे कैसे भारतीय छात्रों की मदद कर सकते हैं। ये मुद्दा अलग है कि वे कभी भी अपना फोन नहीं उठाते, बात और मदद तो दूर कि बात है।

भारतीय छात्रा मीनल पांचाल की मृत्यु की पुष्टि।

हत्यारे कि पहचान के दक्षिण कोरिया के छात्र के रुप में की गयी है। ज्यादा जानकारी यहाँ उपलब्ध है
कुछ हत लोगों के नाम घोषित कर दिए गए हैं, जिन्हे आप यहाँ देख सकते हैं

मेरे विभाग कि एक छात्रा जूलिया प्राइड कि भी इसी घटना में मृत्यु हो गयी है।

मारे जाने वालों में एक प्रोफेसर डॉ॰ जी वी लोगानेथान भारतीय हैं। सिविल इंजीनियरिंग कि एक कक्षा जो मैंने तीन साल पहले ली थी -इन्ही प्रोफेसर के द्वारा- उसमें लगभग सभी मारे गए। एक भारतीय छात्र के गायब होने कि खबर कई स्रोतों से सुनने में आयी है , लेकिन अभी तक कोई पक्की खबर नही है।

ताज़ा खबर: अभी तक मारे जाने वाले लोगों कि संख्या ३३ बताई गयी है। ३१ लोग इंजीनियरिंग हॉल और २ लोग छात्रावास में मारे गए।

जैसा आपमें से कई जानते हैं कि मैं वर्जीनिया टेक में पीएच.डी कर रहा हूँ। १६ अप्रैल को किसी अज्ञात बंदूकधारी या किन्हीं अज्ञात बंदूकधारियों ने दो अलग अलग जगहों पर कई लोगों कि गोली मार कर हत्या कर दी। पहली घटना एक छात्रावास में करीब सवेरे ७:१५ बजे हुई, और दूसरी घटना एक इंजीनियरिंग हॉल में करीब ९:३० बजे के बाद हुई। फिलहाल इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि ये घटनाएं जुड़ी हैं या अलग अलग और अभी तक सिर्फ कयास ही लगाए जा रहे हैं। अभी तक कि पक्की खबर ये बता रही है कि करीब ३२ लोगों कि मृत्यु हो चुकी है, जिनमें एक बंदूकधारी भी शामिल है। अमरीका के इतिहास में ये अभी तक की सबसे बड़ी घटना बतायी जा रही है।

मुझे चूंकि आज कालेज देर से जाना था और जब तक मैं जाता, इस बारे में खबर आ चुकी थी, इसलिये मैं सुरक्षित घर पर ही रहा। मेरे मित्रों में भी सभी ताज़ा जानकारी मिलने तक सुरक्षित हैं।
इंजीनियरिंग हॉल में कई भारतीय भी पढ़ते हैं, किन्तु जिस कक्षा में ऐसा हुआ वहाँ के बारे में कोई खास जानकारी फिलहाल नहीं है। जैसे जैसे जानकारी मिलेगी मैं इसी पन्ने पर बताता रहूँगा। हत्या के कारण के बारे में कई कयास लगाए जा रहे हैं, जिनके बारे में अभी बात करना जल्दबाजी होगी। नीरज दीवान जी के सौजन्य से मैंने इंडिया टीवी पर भी इस बारे में सीधी बातचीत की, जिसके बारे में बाक़ी जानकारी वही देंगे।

आज रात को मैं इससे सम्बंधित शोक सभा में भी जाऊंगा।
राग

Sunday, April 15, 2007

ग्लोबल वार्मिंग: कुछ सत्य कुछ मिथक

जैसा आपमें से कईयों ने देखा है कि परिचर्चा में मैंने एक विषय शुरू किया जिसमें कई लोगों ने ये बातें कहीं कि वे पर्यावरण बचाने में क्या योगदान करते हैं, और क्या करना चाहते हैं। ग्लोबल वार्मिंग जैसे मुद्दे पर कुछ मिथक और कुछ शंकाएं भी हैं तो मुझे लगा कि मैं इस मुद्दे पर कुछ अपने विचार रखूँ।

१ ग्लोबल वार्मिंग के संबंध में डाटा कम है, और एक प्रकार का भ्रामक धंधा है ये।
आई पी सी सी कि ताज़ा रिपोर्ट में सबसे महत्वपूर्ण बात ये बात कही गयी है कि अब हमें मॉडल कि ज़रूरत नहीं है, बल्कि हमारे पास जमीनी आंकडें मौजूद हैं। इस बारे में ज्यादा बहस करने से पहले आप ये समाचार पढ़ सकते हैं।

२ इंसानी गतिवीधियों और कार्बन डाई ऑक्साइड कि बढती मात्रा का संबंध।
इस बारे में जो सबसे बड़ी बात कही जाती है, वो ये है कि ज्वालामुखियों और समुद्र से जो कार्बन डाई ऑक्साइड निकलती है वो इंसानी गतिविधियों से निकलने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड से कई गुना ज्यादा होती है। ये बात सौ फी सदी सच है लेकिन प्राकृतिक माध्यमों से निकलने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड, प्राकृतिक माध्यमों से दुबारा सोख ली जाती है। ऐसा इंसानी स्रोतों से निकलने वाली गैस के साथ नहीं है।

३ इंसानी गतिविधियों से निकलने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड बहुत कम है।
यह बात भी सौ फी सदी सच है, लेकिन पृथ्वी के वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड कि मात्र बहुत ही कम है, और इसलिये इसमें होने वाली थोड़ी घट बढ़ भी इस नाज़ुक संतुलन को बिगाड़ सकती है।
इसी बात को अगर आगे बढ़ायें तो ये सर्वविदित तथ्य है कि फोसिल फुएल्स के जो अनगिनत स्रोत हैं धरती पर वे इसलिये बनें कि वातावरण में पहले कार्बन डाई ऑक्साइड कि मात्रा अधिक थी और अत्यधिक पेड़ पौधों के कारण ही ये संतुलन बदला। कई लाखों सालों में ये प्रक्रिया हुई, और जब ये पेड़ पौधे धरती में लाखों सालों तक अत्यधिक तापमान में रहे तो पेट्रोलियम के पदार्थ में बदले। अब सीधी सी बात ये है लाखों साल में बने यह पेट्रोलियम अगर हम २-३०० साल में फूंक दें तो पृथ्वी का वातावरण कैसा होगा?

४ कार्बन डाई ऑक्साइड और बढ़ते तापमान का कोई संबंध नहीं है
इस बात पर बहुत बहस हो चुकी है और चालू है, लेकिन ये सीधा सा गणित है कि पृथ्वी के पर्यावरण में बदलाव घातक सिद्ध होगा। वैसे आई पी सी सी कि फरवरी कि रिपोर्ट में ऐसा साफ साफ कहा गया है कि ये संबंध एकदम सीधा है।

५ ग्लोबल वार्मिंग के नाम पर किये गए व्यक्तिगत स्तर के प्रयास कोई खास महत्व नहीं रखते
पृथ्वी पर करीब ९ अरब लोग हैं। यदि हर व्यक्ति अपने द्वारा उत्सर्जित की गयी कार्बन डाई ऑक्साइड (और अन्य प्रदूषक) को प्रति वर्षा १० किलो कम कर दे तो पूरी पृथ्वी पर करीब ९ करोड़ टन गैस का उत्सर्जन हम कम कर सकते हैं. इसके अलावा बड़े स्तर पर जो प्रयास होने चाहिऐ वो अलग।

६ ये मुद्दा ज़रूरत से ज्यादा पीटा जा चुका है।
ऐसा लगता है कई बार खास कर उन्हें जो इस संबंध में प्रयास कर रहे हैं, लेकिन यदि आप ध्यान से समाज और साथ के लोगों को देखें तो आपको समझ आएगा कि अभी भी करीब ९०-९५ प्रतिशत लोग रिसाइकल नहीं करते हैं, और संसाधनों का प्रयोग ठीक से नहीं करते हैं। यदि आपको इस बारे में कोई शक हो तो एक हफ्ते हर दिन अपने द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली वस्तुओं की सूची बनायें, और उन चीजों को छाँटें जो आपने बिल्कुल बेकार प्रयोग की या आप रिसाइकल कर सकते थे, तो आपको इस बात का एहसास होगा।

७ और भी गम है ज़माने में
ये बात बिल्कुल सही है, और हर मुद्दे को महत्व दिया जाना चाहिऐ। लेकिन अधिकतर मुद्दे व्यक्तिगत स्तर पर हल करने पड़ते हैं, मगर उसको प्रेरणा कि ज़रूरत लगातार रहती है। अब एड्स का मुद्दा ही देखिए, यदि लोग अपने परिवार में और बच्चों को इस बारे में जानकारी नहीं देंगे तो ये मुद्दा हल नहीं हो सकता, गन्दी राजनीति कि बात देखिए तो ये तभी हल होगी जब तक ज्यादा ज्यादा से लोग राजनीति में रूचि नहीं लेते। ये सच है कि और भी गम है ज़माने में, और हमें चाहिऐ कि सब तरफ ध्यान दें, लेकिन एक बार में एक ही मुद्दे कि बात होती है। मसलन, इस चिट्ठे को आप ग्लोबल वार्मिंग के संबंध में पढ़ रहे हैं और मैं अगर अफ्रीका कि भूखमरी कि बात चालू कर दूं तो मैं और आप भटक जायेंगे, और कोई भी मुद्दा नहीं हल होगा।

८ यदि ये ग्लोबल वार्मिंग और मानव गतिविधियों का संबंध सच नहीं हुआ तो?
इस बात कि सम्भावना लगभग नहीं के बराबर है। ग्लोबल वार्मिंग हो रही है इस बारे में कोई दो राय नहीं। फिर भी अगर ये बात साबित भी हो गयी कि (०.०००१%) मानवीय गतिविधिया इसके लिए जिम्मेदार नहीं है, तो भी इस बारे में किये आपके प्रत्येक प्रयास सार्थक होंगे। फोसिल फुएल खतम होंगे, ये सबको पता है, इसलिये हमें ना खतम होने वाले उर्जा के संसाधनों का प्रयोग करना ही पड़ेगा, और जितना जल्दी करें अच्छा है। वैसे भी छत पर पड़ते सूरज की रोशनी का प्रयोग ज्यादा समझदारी भरा है, बजाय ५००० मील दूर से मंगाई गयी उर्जा से। फोसिल फुएल से सिर्फ कार्बन डाई ऑक्साइड नहीं, कई हानिकारक पदार्थ भी निकलते हैं और इन पर निर्भरता कम करना, समझदारी ही होगी। जो पदार्थ प्राकृतिक रुप से नष्ट नहीं हो सकते, उनका प्रयोग ना करना मेरे ख़्याल से उचित हो होगा।

संसाधनों का न्यूनतम और समझदारी भरा प्रयोग विश्व की और समस्याओं को भी कम करेगा। इस बारे में फिर कभी...

राग

लोग घर में कितनी बर्बादी करते हैं

Friday, April 13, 2007

मादक शनिवार

मित्रों इस बार वर्जीनिया टेक के भारतीय कार्यक्रमों में हिंदी सिनेमा के कुछ बेहतरीन मादक और मदहोश करने वाले गाने सुनाऊंगा। आशा है कि आपको ये गाने प्रसन्न करेंगे। ज्यादा जानकारी के लिए देखें

कार्यक्रम प्रसारित होगा शनिवार को पूर्वी अमेरिकी समय से दोपहर १ बजे और भारतीय समय से रात को १०:३० बजे। रेडियो कार्यक्रम सुनने के लिए बस खोलिये ये लिंक http://www.wuvt.vt.edu/main.html और चटका लगाइये "Listen Online" पर। ब्लैक्सबर्ग में ये कार्यक्रम ९०.७ ऍफ़ एम पर सुना जा सकेगा। १-५४०-२३१-९८८८ पर आप फ़ोन करके फरमाइश भी कर सकते हैं अपने पसंदीदा गानों की।

आप चाहें तो टिपण्णी के द्वारा भी अपने मनपसंद गानों कि फरमाइश कर सकते हैं। मैं पूरा प्रयास करूंगा आपकी फरमाइश पूरी करने की।

राग

Tuesday, April 10, 2007

सेक्स श्श्श्श्श्श्श्श

अरे अगर सेक्स का ज्ञान दिया तो बच्चे बिगड़ ना जायेंगे। उनका चरित्र खराब हो जाएगा, शायद वे आपस में ही सेक्स करने लगे।

कई दिन से ये बकवास तर्क देख रहा हूँ जिनके कारण कई राज्यों में यौन शिक्षा देने से मना कर दिया गया है। यौन संबंधों के मामले में हमारा समाज वैसे कितना घुटा हुआ है इस बारे में बहस फिर कभी, लेकिन क्या बच्चों को ये ज्ञान देना ज़रूरी नहीं है कि वे किस लिंग के है, उस लिंग का होने से क्या महत्व है, उनके शरीर के अंगों का क्या कारण है, अपने अंग छूने का अधिकार मात्र उन्हें खुद ही है, और कोई और उनके अंगों को बिना उनकी मर्जी के छू रह है तो वो गलत कर रहा है।

अभी हाल के १७००० बच्चों के सर्वेक्षण में करीब ५०% से ज्यादा बच्चों ने ये कबूल किया कि उनका यौन शोषण कभी ना कभी ना किया गया है। ये यौन शोषण परिवार मैं, किसी उम्र से बडे मित्र द्वारा, किसी बस या ट्रेन में, या किसी आयोजन में होता है। कभी कभी बच्चे ऐसा होने पर संभल जाते हैं, और कभी कभी ऐसे बच्चों के मानसिक संतुलन पर काफी असर पड़ सकता है।

अब समाज के यौन घुटन के बारे में फिर कभी लिखूंगा और जाने सरकार हमें कब अधिकार दे स्कूलों में इसे पढ़ने का लेकिन माँ बाप से ये उम्मीद रहेगी कि वे अपने बच्चों को समय से उचित यौन शिक्षा दें। और ऐसी शिक्षा देने से पहले खुद भी कुछ पढ़ लें। गलत शिक्षा और मूर्खतापूर्ण पूर्वाग्रह और भी खतरनाक होते हैं।

इससे समबन्धित समाचार तो सब जगह है लेकिन आप इस रिपोर्ट को यहाँ भी पढ़ सकते हैं।
कड़ी
कड़ी 2

राग
एक संबंधित चिट्ठा

Friday, April 06, 2007

आई पी सी सी की ताज़ा रिपोर्ट - खतरनाक स्थिति

अब आई पी सी सी की ताज़ा रिपोर्ट भी गयी है। रिपोर्ट अगर आपने नहीं पढ़ी है तो रिपोर्ट की मुख्य बात ये है कि ग्लोबल वार्मिंग का सबसे ज्यादा असर गरीब देशों पर होगा। रिपोर्ट साफ साफ यह कहती है कि उत्तर भारत इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाली जगहों में से एक होगा. अब ग्लोबल वार्मिंग से प्रभावित होने वाले लोगों कि संख्या लाखों या करोड़ों में नहीं बल्कि अरबों में होगी. जो अब तक सो रहे हैं उन्हें ये एहसास होना चाहिऐ कि आज के बच्चे, क्या शायद हम और आप भी अच्छे वातावरण में सांस ना ले सकें।

हिंदी परिचर्चा में मैंने एक विषय शुरू किया है जिसमें आप पर्यावरण को दिए अपने सहयोग के बारे में चर्चा कर सकते हैं और दूसरों से प्रेरणा ले सकतें है। चर्चा करने वाले अधिकतर लोगों ने इस बात पर खास ज़ोर दिया कि वे यूज़ ऎंड थ्रो टाईप कि वस्तुओं का प्रयोग कम कर रहे हैं, और सी ऍफ़ एल बल्बों का प्रयोग कर रहे हैं। अतुल जी तो साइकिल का ही प्रयोग करते हैं और सोलर कुकर से खाना पकाते हैं। इसके अलावा भी चर्चा करने वालों ने कई प्रेरणादायक प्रयास गिनाये। आप भी पढ़िये, प्रेरणा लीजिये और बताइए कि आप क्या करते हैं पर्यावरण के लिए, और क्या करना चाहते हैं। बताइए कि पर्यावरण बचाने के लिए आपने आज क्या प्रतिज्ञा ली।

राग

Thursday, April 05, 2007

परिचर्चा में चर्चा कीजिये पर्यावरण को दिए अपने योगदान की

हिंदी परिचर्चा में मैंने एक विषय बनाया है जिसमें आप पर्यावरण को दिए अपने व्यक्तिगत सहयोग के बारे में अपना अनुभव बाँट सकतें हैं। इस चर्चा में आप उन सब बातों का उल्लेख करें जिससे आप को लगता है कि आप पर्यावरण को सहयोग दे रहे है। इससे ना सिर्फ ये पता चलेगा कि व्यक्तिगत स्तर पर हम पर्यावरण के लिए कितने जागरूक हैं, बल्कि पढने वाले लोगों को भी कुछ नया करने कि प्रेरणा मिलेगी। इस छोटे से प्रयास से शायद हम पृथ्वी का कुछ थोडा सा भला कर सकतें हैं।

तो फिर शुरू हो जाइए और सबको बताइए कि आप क्या कर रहे हैं पर्यावरण के लिए

अगर आपको लगता है आप कुछ करना चाहते हैं और किन्हीं कारणों से नहीं कर पा रहे हैं तो वो भी लिखिए

राग

Tuesday, April 03, 2007

चलो नेतागिरी करें

दो दिन पहले उप्र के चुनाव कि कवरेज सुन रह था बीबीसी में. जी उकता गया सच में. सोचा कि जिन मुद्दों को मैं थोड़ा सा भी महत्व देता हूँ, उसकी क्या कीमत है आज?

  • सूख रही है गंगा? सब बकवास है? (या फिर सवर्णों या ईसाईयों का झूठा प्रचार है )
  • ग्लोबल वार्मिंग? यह क्या है?
  • मरता हुआ किसान? अमेरिका से अनाज सकता है ना!
  • प्राथमिक शिक्षा? सब पढ़ गए तो हमें वोट कौन देगा?
  • उच्च शिक्षा? जाओ ना पढ़ने विदेश फिर?
  • समाजिक बराबरी? आरक्षण का लेमन चूस दिया ना? चूसो?
  • बिजली? जो आज तक ना रही उसके बारे में क्या उम्मीद करो?
  • भ्रष्टाचार? ये भी कोई मुद्दा है?
  • शोध? क्यों? हमें तो सब पता हैं ना?
  • एड्स? श्श्श्श्श्श्श्श
एक छोटी से कविता लिख दी इस मुद्दे पर, माफ़ कीजियेगा

चलो नेतागिरी करें
तुम जाती का मुद्दा उठाओ,
हम गरीबी का उठाते हैं

तुम मंदिर बनाओ,
हम कहीँ मदरसा खङा करवाते हैं
तुम जुर्म कि गिनती कराओ
हम गबन कि करवाते हैं

चलो नेतागिरी करतें हैं

अब क्या करना इस बात से कि
किसान मर रहे हैं
सरपंच से कह कर उनके वोट तो पड़ ही जाते हैं

अब क्या करना इस बात से कि
गंगा गन्दी हो रही है
कुम्भ में नहाते वक्त
पानी ही तो छोड़ना होगा बाँध से
और फिर हो जाएगा हर हर गंगे

क्या मतलब इस बात से कि
सूख रही गंगा,
नहीं कर पाएगी भरण पोषण
इस सूखते हुए राज्य का।
बंगलादेश से मँगा लेंगे कुछ और वोटर

बिजली अब कोई मुद्दा नहीं
सबके पास जनरेटर है
नहीं तो एक इनवर्टर है
वैसे एक घंटे भी रहेगी बिजली तो
अमिताभ प्रचार कर ही देगा

भ्रष्टाचार कोई मुद्दा रहा नहीं
एक ही तो हम्माम है
सब ही हैं इसमें नंगे
हम राजा तो तुम्हारी जांच
तुम राजा तो हमारी जांच

यह खेल भी बड़ा निराला है
सबको मंत्रमुग्ध कर डाला है
फिर गद्दी पर आएंगे
कुछ और भी खेल दिखायेंगे

आओ वोट माँग के आते हैं,
कुछ और भी रंग दिखाते हैं

चलो नेतागिरी फैलाते हैं

राग

Monday, April 02, 2007

सन् २०३० के बाद क्या गंगा बचेगी?

कल इस बारे में समाचार देखा कि २०३० तक हिमालय के हिमनद अपने आकार के १/५ ही रह जायेंगे। वैसे इस बारे में पहले भी को चेतावनियाँ आ चुकी हैं मगर यह ताज़ा रिपोर्ट कहती है कि इन हिमनदों के घटने का स्तर बहुत तेजी से बढ़ रहा है और अगर पृथ्वी यूं ही गर्म होती रही तो २०३० तक यह हिमनद बुरी तरह घट जायेंगे। यदि आपको लगता है कि आपको कुछ करना चाहिऐ तो पढिये टाइम का ताज़ा अंक और कुछ प्रेरणा लीजिये। लोगों को और जागरूक बनाइये, कृपण होइये, बिजली बचाइए, मगर कैसे भी करके इस पृथ्वी को बचाइए।

समाचार कडियाँ
हिमनद का घट रह आकार
टाइम का ताज़ा अंक

राग