Saturday, December 23, 2006

कुछ मुन्नाभाई के चुटकुले

Wednesday, December 20, 2006

धूम-२ः कूड़े का ढेर

रात के २ बज रहे हैं, घर पर अभी धूम-२ खत्म हुई है। मित्रों के साथ मिल कर ६ लोगों ने देखनी शुरू की, एक बीच में घर चला गया, और एक सो गया। बाकी जिन्होने खत्म की, उनके चेहरे के भाव एसे हैं जैसे किसी ने बूरी तरह बेवकूफ बनाया हो।

सबसे पहले, कहानी बेकार, फिर पटकथा, अदाकारी तो खैर थी ही नहीं। हाल ये है कि ज्यादा बुराई करने की भी इच्छा नहीं हो रही। सच बताऊँ तो दिल सा टूट गया, इतनी हाइप्ड मूवी की ये हालत देख कर। अगर बिपाशा को टू पीस में और एश्वर्य को कुछ भड़काऊ कपड़ों में देखना हो तो आप ये मूवी देखने की हिम्मत करें, लेकिन फिर भी ये सौदा महँगा ही होगा।

खैर २००६ की मेरी बेहतरीन हिन्दी मूवीज़ की सूची। मेरे ख्याल से २००६ फिर भी अच्छा रहा निम्नलिखित अच्छी मूवीज़ पर गौर करें तो।

१. खोसला का घोंसला
२. रंग दे बसंती
३. लगे रहो मुन्नाभाई
कॉर्पोरेट
डोर
ओंकारा
बीइंग साइरस
५. प्यार के साईड इफैक्ट्स
आहिस्ता आहिस्ता

अनुराग

Sunday, December 03, 2006

मेरा भारत महान

तरनतारन में तलवारबाजी, आगरा में पत्थरबाजी, सूरत में आगजनी ये सब हुआ एक दिन में। पूरे हफ्ते को जोड़ लें तो ट्रेनें फुकीं, महाराष्ट्र में सो अलग। सासाराम में एक दंपत्ति को जिंदा फूँक दिया। गैरजिम्मेदारी, लापरवाही, और निकम्मेपन का उदाहरण बना भागलपुर का पुल।

क्या हो गया है हमें? कितने खाली और बेकार हैं हम? सामाजिक जिम्मेदारी और नैतिकता से कितने दूर होते जा रहें हैं हम। कितना भी पैसा आता रहे, देश लोगों से बनता है, जिम्मेदार नागरिकों से बनता है, बात बात पर मार कुटाई करने वालों से नहीं।
कुछ कहने को नहीं है इस चिट्ठे में बस हताशा है, और बेबसी...

अनुराग

Friday, December 01, 2006

भारतः एड्स पीड़ितों का नया गढ़

इस बार के मेरे रेडियो कार्यक्रम में यही चर्चा का विषय रहेगा। ज्यादा जानकारी के लिए देखें http://wuvtindian.blogspot.com/2006/12/dec-2-india-new-center-of-aids.html

अनुराग

Thursday, November 30, 2006

याद आई एक पुरानी कविता

एक बचपन की पुरानी कविता याद आई, माँ की सुनाई हुई, तो सोचा की बाँट लूँ।

घर आई आटे की बोरी,
चुहिया निकली करने चोरी,
बोरी काट घुसी वो अंदर,
छुप आटे में करती फड़ फड़,
नानी ने जब गूँथा आटा,
चुहिया ने उँगली में काटा,
नानी बोली हाय हाय,
सारा खून निकलता जाए,
पकड़ो चुहिया भाग ना पाए।

अनुराग

Wednesday, November 29, 2006

एक कड़वा सच

आज ये झलकी देखी। ये फिल्म देखना अब आवश्यक हो गया है।

Thursday, November 23, 2006

धर्म, भगवान, धर्मांतरण, मैं और आप

पिछले कई सालों से और कई रूपों में मैने इन शब्दों का सामना किया है, मगर इनका मीमांसा करने से बचता ही रहा हूँ। न खुद को समझाने की कोशिश की, ना किसी दूसरे को (कहीं उसकी "धार्मिक" भावना को ठेस ना लग जाए)।

ये विचार मेरे मन में लेकिन कई तरह से आते ही रहे हैं, तो अब अपनी समझ के अनुसार मैने इनकी विवेचना करने का निर्णय ले ही लिया। आगे बढ़ने से पहले मैं ये साफ कर दूँ कि भगवान पर मेरा पूर्ण विश्वास है और मेरा ये मानना है (जानना नहीं) कि कोई शक्ति है जो कई रूपों और गुणों में सर्वत्र विद्यमान है और हमको चला रही है। इस शक्ति का नाम हम फिलहाल "भगवान" ही मान लेते हैं।

ये भगवान जितना सब जगह है उतना ही हमारे और आपके अंदर है। जब किसी रोते को देखककर आपमें दयाभाव जगता है तो आपके अंदर का भगवान प्रकट हो जाता है। मात्र यही है मेरी और मेरे भगवान की परिभाषा। अहम् ब्रह्मास्मि।

अब आती है भगवान की परिभाषाओं की बात। जहाँ तक मेरा मानना है भगवान (या उसकी परिभाषाएँ) इंसान का आविष्कार हैं, ताकि वह अपनी सीमित दिमाग की समझ से बाहर की चीज़ों को परिभाषित कर सके। ये दुनिया, ब्रह्मांड, जीवन, मृत्यु, प्रकृति आदमी की समझ के बहुत बाहर है, और इंसान हमेशा से इन चीज़ों को समझने की कोशिश करता रहा है। इन्हें समझने के लिए इंसान ने ना सिर्फ भगवान का आविष्कार किया बल्कि उसे शक्ल देने की कोशिश भी कि।

राम, कृष्ण, जीसस ये सब असाधारण व्यक्तित्व और प्रतिभाओं वाले साधारण मनुष्य थे। मगर उनका वर्णन और विवरण करने वाले लेखकों ने, भक्तों ने, अनुयायियों ने इनको महापुरुष और फिर भगवान का रूप दे दिया। यहाँ तक तो फिर भी ठीक था, लेकिन फिर इन महापुरुषों की बातों का अनुपालन करने वालों का एक धर्म का अनुयायी मान लिया गया। संस्कृतियों को धर्म के नाम से बाँट दिया गया और ये तय कर दिया गया कि एक आदमी दूसरे से अलग कैसे है।

धर्म के नाम पर रोटी सेकने वालों की मौज हो गई। इतिहास गवाह है कि बड़े बड़े धार्मिक संस्थान भ्रष्टाचार के गढ़ रहे हैं। धर्म डर दिखाने का एक अच्छा माध्यम भी है, भेंड़चाल से चलने वालों लोगों को चलाने का एक बढ़िया माध्यम भी मिल गया। धर्म को नैतिक आचरण परिभाषित करने का भी जरिआ बना दिआ गया। जो हो गया, सो हो गया, लेकिन सैकड़ों, हजारों साल पहले स्थापित, परिभाषित किए गए नियमों से आज भी समाज को हाँकने का प्रयास किया जाता है। समय के साथ समाज का नियम और आचरण भी बदलते हैं, लेकिन धर्म के तथाकथित ठेकेदार आज भी चाहते हैं कि दुनिया पुराने नियमों के अनुसार आचरण करे और धर्माधिकारियों और भगवान से डरे। जो अपने नियम बनाए और आधुनिक विचारों से चले वो नास्तिक, भ्रष्टाचारी और ना जाने क्या क्या।

कई धर्माधिकारी अपने अनुयायियों पर जोर देते हैं कि वो ज्यादा बच्चे पैदा करें, फिर चाहे पृथ्वी की अतिशय संसाधन दोहन से कमर टूटती है तो टूटती रहे, लेकिन "मेरे जैसा धर्म" मानने वाले की संख्या बढ़ती रहे। कई धर्माधिकारी कपड़े पहनने के नियम भी परिभाषित करते हैं, फिर चाहे पहनने वाले की मर्ज़ी हो या ना हो। कुछ जगह तो संसर्ग करने के नियम भी तय किए जाते हैं। हर इंसान अपनेआप में अलग है, उसे कम से कम अपना निजी जीवन खुद निर्धारण करने का अधिकार तो होना ही चाहिए।

जिस तरह धर्म एक गोरख़धंधा है, और भ्रष्टाचार करने वालों के लिए एक अच्छा माध्यम है, और उसी तरह से धर्मांतरण भी एक गोरख़धंधा है। आपकी वफादारी "एक तरह के भगवान" से "दूसरे तरह के भगवान" में बदलने की कोशिश की जाती है। काफी पैसा भी इसमें बनता है, बड़े बड़े दान मिलते हैं, और समाजसुधार का ढोंग भी होता है। खैर...

सबसे मजेदार बात ये है कि धर्म का ये गोरखधंधा अरबों लोगो को चला रहा है और धर्म करोड़ों लोगो की असमय मौत का कारण रहा है। दुनिया आज भी धर्म के नाम पर बँटी हुई है और आज भी कई लोगों की मौत का कारण धर्म ही है।

कभी कभी सोचता हूँ कि अगर दुनिया में धर्म ही नहीं होता तो कैसा होता...

अनुराग

Wednesday, November 08, 2006

बिनाका गीतमाला

मित्रों मुझे बिनाका गीतमाला के एक-दो कार्यक्रमों के कुछ टुकड़े मिले हैं। इस बार अपने रेडियो कार्यक्रम में प्रस्तुत करने का इरादा है। इच्छा हो तो ज़रूर सुनियेगा।

भारत में शनिवार रात्रि ११ः०० बजे, और अमेरिका में शनिवार दोपहर एक बजे। इंटरनेट पर सुनने के तरीके के लिए यहाँ देखें

अनुराग

Tuesday, October 31, 2006

ज़हीर और इश्क

आज ये विडियो देखा, मज़ा आ गया। आप भी देखिए।

अनुराग

Wednesday, October 11, 2006

ज़रूर देखिए

मलेशिया में कुछ कुछ होता है गायन और उस पर नृत्य। ज़रूर देखिए।

Wednesday, September 06, 2006

कुछ कम्प्यूटर की

संपादितः दिनांक 09/11/2006
कई टिप्पणियों के लिए धन्यवाद। पाठकों ने एसे मुफ्त कार्यक्रम के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की जिससे की किसी भी फाइल को पीडीएफ में बदला जा सके। मुफ्त में पीडीएफ बनाने के लिए दो कार्यक्रम हैं। PDF Creator और Cute PDF। दोनों का तुलनात्मक अध्ययन नहीं किया मैंने, पर दोनो ही अच्छे हैं। यदि आप ओपनआॅफिस के कार्यक्रम प्रयोग करें तो उसमें मूलतः फाइलों को पीडीएफ में बदलने की काबिलियत होती है।


इस बार के चिट्ठे में मैं कुछ एसे कम्प्यूटर कार्यक्रमों के बारे में बताऊँगा जिससे आपके रोज़मर्रा के कुछ काम आसान हो सकेंगे।

1. Foxit Reader - आप पीडीएफ फाइलों को खोलने के लिए अडोब रीडर का प्रयोग करते होंगे। अडोब रीडर मुझे कभी भी नहीं भाया, क्योंकि ये बहुत बड़ा है, धीरे खुलता है, और फाइल पर टिप्पणी नहीं करने देता। फाक्सइट इस सब का जवाब है। ये बहुत ही छोटा है (1 एम बी से कम), तुरंत खुलता है, फाइलों पर टिप्पणी भी करने देता है, अडोब की तरह एक विंडो बंद करने पर सारी फाइलें नहीं बंद करता है। अडोब रीडर हटाने पर कम्प्यूटर भी तेज़ चलता है।

2. Powerdesk - जो पावरडेस्क इस्तेमाल करते हैं, वो सोचते हैं कि लोग विंडोज़ एक्स्प्लोरर क्यों इस्तेमाल करते हैं। पावरडेस्क एक फाइल प्रबंधन कार्यक्रम है, जिसमें विंडोज़ एक्स्प्लोरर से काफी ज्यादा खूबियाँ हैं। पहली बात ये कि ये तुरंत खुलता है, आप विभिन्न फाइलों को इसी मे ज़िप-अनज़िप कर सकते हैं, पूरे कम्प्यूटर की किसी भी जरूरी प्रक्रिया (जैसे कंट्रोल पेनल, डिस्क मैनेजमेंट, विंडोज़ अपडेट) तक इससे पहुँच सकते हैं। कुल मिला कर फाइल प्रबंधन और कम्प्यूटर प्रबंधन आसान हो जाता है।

फिलहाल यहीं तक, बाकि फिर कभी।

अनुराग

Monday, August 28, 2006

भारतीय रेडियो कार्यक्रम वर्जीनिया टेक में

मित्रों।

वर्जीनीया टेक (यू एस का एक बढ़िया शिक्षण संस्थान) के आधिकारिक रेडियो स्टेशन पर मैं प्रति शनिवार कार्यक्रम प्रस्तुत करता हूँ, जिसमें गीत संगीत के अलावा कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस भी होती है। इस बार का मुद्दा है आरक्षण। आप इसे इंटरनेट पर भी सुन सकते हैं, चाहे देस, या परदेस। अधिक जानकारी के लिए देखें http://wuvtindian.blogspot.com

अनुराग

Sunday, August 20, 2006

हिन्दुस्तान का असमंजस ः भगवान भी मूर्ख बनाने आ पहुँचे

अब और क्या कहें? वहाँ दिल्ली मे हमारी सरकार आरक्षण का बिल केबिनट की बैठक में पास करने जा रही है और इधर भारतवासियों को मूर्तियों को दूध पिलाने से फुरसत नहीं है। मुझ् लगता है कि भारत की अधिकतर जनता इतनी हताश हो चुकी है कि उसका भरोसा अब सिर्फ इन टोने टोटकों पर रह गया है। अब भगवान के धरती पर आने की ही प्रतीक्षा है।

सबसे मजे़दार तो ये समाचार चैनल है जो कि सबसे गैर ज़रूरी खबर का जोर शोर से प्रचार करते हैं। अब ये खबर तो इतनी बेकार है कि और लिखने की इच्छा कर ही नहीं रही। बस God Bless India

अनुराग

Thursday, August 10, 2006

करण जौहर का एक और तमाशा...

करण जौहर साहब फिर एक और एसे सिनेमा (कभी अलविदा ना कहना) के साथ आ रहे हैं जो पौने चार घंटे लंबा है (बाप रे बाप), उसमे लंबे-लंबे रोने धोने के सीन होंगे, जीवन से बड़े फ्रेम होंगे और काफी उपदेश होंगे। मेरी तो इच्छा पौने चार घंटे सुन के ही खत्म हो गई।

सिनेमा के बाद शाहरुख खान की बासी एक्टिंग की बड़ी तारीफ होगी, सारा का सारा मीडिया भी इसी में जुट जाएगा। आखिर करन जौहर सभी जगह पैसा लगाते जो हैं ;)। जी सिने अवार्ड में सारे के सारे अवार्ड इसी को मिलेंगे। शाहरुख खान सर्वोत्तम अभिनेता, बाकी सब को भी कुछ ना कुछ मिलेगा ही।

थोड़ा बहुत फिल्मफेयर में भी मिलेगा ही।

सोच रह हूँ कि मुझे इतना कैसे पता है...

संपादित- ये लीजिए मेरी बात सच करती एक दर्शक की टिप्पणी।
आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं. तरन आदर्श जैसे समीक्षक पहले से ही गुणगान शुरू कर चुके हैं. बॉलीवुड में समीक्षकों के भी गुट हैं. (उदाहरण के लिए- सुभाष के. झा भूल के भी आमिर की तारीफ़ में कोई वाक्य नहीं लिख सकता.)फ़िल्म देखी. साढ़े तीन घंटे वाला प्रिंट था. लगा आराम से ढाई घंटे में काम चलाया जा सकता था. दो गाने तो सीधे-सीधे ठूंसे हुए लग रहे थे.एक्टिंग के नाम पर सिर्फ़ रानी की एक्टिंग से काम चलाइए. शाहरुख और प्रीटि ही नहीं, बल्कि अमिताभ की भी ओवरएक्टिंग है. अमिताभ एक छिछोरे पात्र की भूमिका में एक्टिंग करते हुए पहली बार अपने बेटे से पीछे छूट गए हैं. वो भी तब, जब सबको पता है अभिषेक ख़ुद कितने बड़े अभिनेता हैं! फ़िल्म में शाहरुख़ ख़ान भूल जाते हैं कि उन्हें कितना लंगड़ाना है- मतलब, कभी झटके-मार लंगड़ा बन जाते हैं, कभी हल्का लंगड़ापन ले के चलते हैं, तो कभी-कभी कोई लंगड़ापन नहीं. (होठों को थरथरा के भर्राई आवाज़ में बोलने मात्र को एक्टिंग मानते हों, तब तो शाहरूख़ ने ज़बरदस्त एक्टिंग की है.)कहानी बिल्कुल ही बेतुकी तो है ही, पटकथा में अनेक झोल है. शाहरुख़ ख़ान फ़िल्म के शुरू में फ़ुटबॉलर हैं और निर्देशक की बलिहारी एक उदाहरण देखें- शाहरुख़ को पेनाल्टी किक लेना है तो वह 10-12 मीटर दूर से(क्रिकेट के तेज़ गेंदबाज़ जैसी तेज़ी से) भाग कर आते हैं गेंद को ठोकर मानने के लिए! अभी-अभी विश्व कप फ़ुटबॉल के दर्जनों मैच देखे थे- किसी देश के किसी खिलाड़ी ने किक लेने के लिए इतनी लंबी दौड़ नहीं लगाई!अच्छी चीज़ों में से हैं- दो गाने, ख़ास कर वो गाना जिसमें ढोलक का बेहतरीन प्रयोग है. और न्यूयॉर्क की ज़बरदस्त सिनेमोटोग्राफ़ी!

Tuesday, August 08, 2006

भारत सरकार के जालस्थल की शिकायत।

मैने भारत सरकार के जालस्थलों के बारे में एक शिकायत दर्ज कराई थी। उनका जवाब यहाँ पढ़ें।

National Portal of India: Feedback


अनुराग

Sunday, July 23, 2006

हमारा पैसा, हमारा हिसाब - सूचना का अधिकार और जन आंदोलन।




संपादित (दिनांकः जुलाई 31, 2006) ऊपर विडियो में दिख रहे एक कार्यकर्ता हैं, श्री अरविंद केजरीवाल। इनकी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के लिए इन्हें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। आप इन्हें parivartan_india@rediffmail.com पर बधाई दे सकते हैं।

आज ही कुछ मित्रों (AID-Association for India's Development-Blacksburg, Va, Chapter) ने सूचना के अधिकार पर चल रही ताजा बहस के संबंध में जानकारी भेजी और इस विडियो का स्रोत भी दिया।

सन् २००१ में भारत सरकार ने आम जनता को सूचना का अधिकार दिया था। इस अधिकार के अनुसार कोई भी आम व्यक्ति सरकार से किसी सरकारी परियोजना के संबंध में सूचना प्राप्त कर सकता है। अब मुद्दा ये है कि कोई भी सरकारी परियोजना कई माध्यमों से होती हुई अपने अंजाम तक पहुँचती है। और किसी भी परियोजना में क्या होगा, यह माध्यमों द्वारा दी गई टिप्पणी, सुझाव और प्रतिक्रियाओं पर निर्भर करता है।

अब कांग्रेस सरकार और इसके प्रधानमंत्री जो भारत के शायद सबसे बड़े दुर्भाग्य हैं, एक प्रस्ताव ला रहे हैं जिसके अनुसार सूचना के अधिकार के अन्तर्गत आपको किसी भी परियोजना के अंजाम की जानकारी प्राप्त हो सकेगी, लेकिन माध्यमों में क्या हुआ ये सरकारी राज हो जाएगा। उदाहरण के लिए अगर आप पूछें कि सूचना के अधिकार में संशोधन किसने प्रस्तुत किया? सरकारी राज़। किसने समर्थन किया? राज़। किसने विरोध किया? राज़। किस आधार पर समर्थन या विरोध हुआ? राज़। क्या किसी और की राय ली गई? राज़। उनके क्या विचार थे? राज़। राज़, राज़ और राज़।

हमें इस बात का एहसास होना चाहिए की सूचना का अधिकार हमारे हाथों में भ्रष्टाचार के खिलाफ बहुत बड़ा हथियार है।कई लोग इस संदर्भ में आंदोलन कर रहे हैं और मेरी तरह सरकार से इस संशोधन को वापिस लेने का आग्रह कर रहें हैं। आप कृपया इस बारे में और जानकारी प्राप्त करें और इस जाल आधारित (web based) निवेदन पर हस्ताक्षर करें

ऊपर, सूचना के अधिकार की मदद से चलाए गए एक सामाजिक आंदोलन (परिवर्तन की मदद से) का विडियो ज़रूर देखें। ये विडियो आपको सूचना के अधिकार के बारे में ना सिर्फ जानकारी देगा, बल्कि आम व्यक्ति के स्तर पर आंदोलन कैसे चलाया जाता है, इसका भी दृष्टिकोण देगा।

मेरा ये चिट्ठा संक्षिप्त रुप से हिन्दी में लिखने का ये कारण है कि मैं इतना महत्वपूर्ण मुद्दा ज्यादा से ज्याद लोगों तक पहुँचा सकूँ। विचार आमंत्रित हैं।

इस विषय पर अन्य स्रोत
इंडियन एक्सप्रेस-१
इंडियन एक्सप्रेस-२

सूचना के अधिकार से हल हुई कुछ समस्याएँ।

अनुराग मिश्र

Wednesday, July 19, 2006

इंटरनेट और हिन्दी

ये बात बड़ी ही रोचक है की मुख्यतः अंग्रेज़ी भाषा में विकसित हुआ कंप्यूटर और इंटरनेट आज बड़े ही बेहतरीन तरीके से अन्य भाषाओं में इस्तेमाल हो रहा है। आज अंग्रेज़ी का न्यूनतम ज्ञान रखने वाला भी कंप्यूटर और इंटरनेट भलीभांती प्रयोग कर सकता है।

हिन्दी भाषा सीखने, समझने, और अच्छे लेखों के लिए इंटरनेट पर अनगिनत स्रोत उपलब्ध हैं। एक सबसे बढ़िया शुरुआती स्रोत है हिन्दी विकिपीडिया । यदि आप हिन्दी के अच्छे जानकार हैं तो आप इस स्रोत को अपना योगदान भी दे सकते हैं।
बी बी सी हिन्दी, हिन्दी समाचारों का अच्छा स्रोत है। यूँ तो अन्य कई और हिन्दी समाचार पत्र भी हैं जैसे दैनिक जागरण, पंजाब केसरी, अमर उजाला और अन्य। लेकिन बी बी सी के अलावा लगभग सभी हिन्दी समाचार पत्र बदतरीन वेब निर्माण का नमूना हैं। ये समाचार पत्र यूनिकोड (अक्षर छापने का मानक) ना इस्तेमाल करके अपना ही फोंट प्रयोग करते हैं, जिससे इन्हें इंटरनेट एक्सप्लोरर के अलावा अन्य किसी इंटरनेट ब्राउज़र पर देखना मुश्किल होता है। ये समाचार पत्र आर एस एस फीड से भी नहीं पढ़े जा सकते। इनमें एक नाम भारत के सामाजिक न्याय मंत्रालय का भी जोड़ लीजीए।

इंटरनेट पर आजकल आपको कई हिन्दी चिट्ठाकार मिल जाएंगे। इनमें से अधिकतर काफी बेहतरीन लेखन करते हैं। इनकी शैली सहज और आधुनिक है। हिन्दी चिट्ठों के बढ़िया स्रोत हैं, अक्षरग्राम, नारद, देसीपंडित एवं अन्य कई। इन स्रोतो पर पहुँच कर आपकी आँखें इंटरनेट पर हिन्दी जगत की ओर खुल जाएंगी, और आपको कई और बढ़िया साइट मिलेंगी। मेरी पसंद के कुछ स्रोत मैने अपने हिन्दी चिट्ठों की साइट में बाईं तरफ चिन्हित किए हैं।

इन चिट्ठाकारों को देखकर ये संतोष होता है कि हिन्दी के जानकार इंटरनेट का भरपूर प्रयोग कर रहे हैं और इससे भाषा का पर्याप्त प्रसार भी हो रहा है। उम्मीद है कि ये चलन और बढ़ेगा।

अनुराग

Wednesday, July 05, 2006

सरकार या सरकस

भारतवर्ष की यूपीए सरकार को देखकर ऐसा ही लगता है। जिसकी जो मर्जी़ आए वही करता है। कुछ दिन पहले अर्जुन सिंह को अचानक सामाजिक न्याय का भूत सवार हुआ और उन्होंने आरक्षण का शगूफ़ा छोड़ दिया। नतीजा सबके सामने है। मीरा कुमार को लगा की वो कहीं सामाजिक न्याय की रेस में पीछे ना छूट जाए तो उन्होंने खुलेआम सभी निजी कंपनिओं को अपने यहाँ आरक्षण लगाने की धमकी दे डाली।

किसी तरह इन सब पर भी देश चल रहा था तो एकदम बेकाम स्वास्थ्य मंत्री ने एम्स के निदेशक को बर्खास्त कर दिया। अब स्वास्थ्य मंत्री के सामने एम्स के निदेशक की काबिलियत की क्या बात कहें। बस इतना काफी है की दिल के डाक्टरों में वे भारत में सर्वोत्तम माने जाते हैं, हाँ अलबत्ता कोई चुनाव नहीं जीते हैं बेचारे।

अब इसे स्वास्थ्य मंत्री जी की बदले की कार्रवाई ना समझें तो क्या कहें? उधर सरकार हड़ताल से लौटे डाॅक्टरों को तनख्वाह नहीं दे रही है, जो की सीधे सीधे उच्चतम न्यायालय की आज्ञा की अवहेलना है।

जब ये सरकार उच्चतम न्यायालय को ठेंगा दिखा सकती है तो हम और आप हैं ही क्या?

प्रधानमंत्री जी की तो क्या ही सुनाएं? मेरी नज़र में वे भारत के हर नागरिक की बेबसी और मूर्खता के जीते जागते उदाहरण हैं। बेशर्मी की हद ये की विदर्भ में इतने किसानों की आत्महत्या के बाद वहाँ जाकर थोड़ा मलहम लगाकर बोले की सिर्फ़ खेती से कुछ नहीं होगा, किसानों को और भी धंधे करने चाहिए। इतने होनहार प्रधानमंत्री से ये बात सुन के शर्म तो आती ही है, बेबसी ज्यादा महसूस होती है।

मूर्खता का तमाशा करती ये सरकार ना जाने कब तक हमारे सर पर सरकस करेगी?

अनुराग

Monday, June 05, 2006

विनय और आत्मसम्मान की कमी

संपादितः जुलाई 5
बदतमीज़ी का एक और सबूत। आर्मी के जवानों की हरकत।

संपादितः जून 21

मेरे चिट्ठे को साबित करता एक लेख। मुंबई दुनिया का सबसे अशिष्ट शहर।


पिछले चिट्ठे में मैंने भारत में बढ़ती कई समस्याओं की तरफ एक साथ ध्यान दिलाने का प्रयास किया था। हम सब अपनी तरफ से इनके हल समझने और सुलझाने का प्रयास करते हैं। ये चिट्ठा मेरी तरफ से इस दिशा में एक कदम है।

मेरा मानना है की हमारी आधी से ज्यादा समस्याओं का कारण है हममें विनय और आत्मसम्मान की कमी। आप किसी भी समस्या के मूल में जाएंगे तो आपको इस बात का एहसास होगा की...

1. हम अपनी इज्ज़त खुद नहीं करते।
2. हम दूसरों की भी इज्ज़त नहीं करते।
3. हम सबसे अपनी इज्ज़त की अपेक्षा रखते हैं।

इन सब के समर्थन में मैं साधारण जि़न्दगी के उदाहरण पेश करूंगा और हो सका तो इनका हल बताने का प्रयास करूंगा।

हम जहाँ खाना खाते हैं वहीं गन्दगी करते हैं। उदाहरण, अपना घर छोड़ कर सब जगह।

हम छोटे रेस्तरां के बैरे से, सफाई करने वाले कर्मचारी से, सब्जी बेचने वाले से, सरकारी दफ्तर में (जैसे बैंक, डाकघर) उपभोक्ता से ऐसे बात करते हैं, जैसे वो कटखना कुत्ता हो। पुलिस वाला/वाली किसी को पकड़ ले तो एसे थप्पड़ मारते हैं, कि कोई जानवर को भी ना मारे (अपराध सिद्ध हो जाए, तब तो बात ही अलग)।

अनजाने में किसी से नज़र मिल जाए तो सिर झुकाके नमस्कार करने के बजाए ऐसे नज़र चुरा लेते हैं, जैसे भूत देख लिया हो।

यातायात के नियम तोड़ने में शेखी समझते हैं। ठीक जगह गाड़ी पार्क करने में शरम आती है। पुलिसवाला या कोई अन्य मना करे और हमारी पहुँच ऊँची हो तो उससे भी बदतमीजी करते हैं।

कहीं भी थूकना हम अधिकार समझते हैं।और थूकते वक्त इस बात का तो बिलकुल ख्याल नहीं करते की किसी पर छींटा ना पड़ जाए।कोई टोके तो उससे लड़ भी जाते हैं।

अधिकारी हो कर जिम्मेदारी से काम नहीं करते, शिक्षक हो कर ठीक से पढ़ाना नहीं चाहते, स्वयं विद्यार्थियों को सम्मान नहीं देते और सम्मान की पूरी अपेक्षा रखते हैं। कुछ ऐसे भी बाप हैं जो दफ्तर में भ्रष्टाचार करते हैं और घऱ में इसका गुणगान भी करते हैं। इसके बाद अपने बच्चों से सम्मान की अपेक्षा करते हैं।

महिलाओं की इज्ज़त तो जैसे खून में ही नहीं है, इसलिए हर औरत खासकर जो पहुंच में हो उससे बदतमीज़ी करते हैं, बलात्कार करते हैं, कुछ ना हो सका तो घटिया "कमेंट" देने से नहीं चूकते।

वृद्धावस्था में पहुँच कर नई पीढ़ी को न सिर्फ अतिशय सुझाव देते हैं, बल्कि अपनी तरह से चलाना भी चाहते हैं। राजनीति इसका प्रबल उदाहरण है। ये समाचार तो बहुत शर्मनाक है कि तमिलनाडू के मुख्यमंत्री 83 साल के हैं, और कुछ लोग इस मौके पर जश्न मना रहे हैं।

हम अपने वोट की कीमत न समझते हैं, न समझना चाहते हैं। हम अपने सुझाव की कीमत नहीं समझते, और न अपनी बातों की। समाचार का शीर्षक पढ़के राय बना लेते हैं और दंगा करते हैं। राष्ट्रीय या स्थानीय किसी भी मुद्दे पर जानकारी इकट्ठा नहीं करना चाहते जब तक खुद पर मुसीबत ना आ जाए। उसके बाद किसी भी नेता की बातों में आकर बवाल करतें हैं।अपनी ही सरकारी संपत्ति को खुल के नष्ट करते हैं।

24 घंटे बिजली ना मिलने को अपनी किस्मत समझते हैं। समय पर पानी ना मिलना, नल में गंदा पानी आना रोज़मर्रा की बात है।

हमें आगे बढ़ने के लिए, समस्याओं से निजात पाने के लिए खुद का आत्मसम्मान बढ़ाना पड़ेगा।दूसरों की इज्ज़त करनी पड़गी, तब हमारी बातों का कोई अर्थ होगा, समाज में इज्ज़त होगी, राजनीतिज्ञों को हमारी बात माननी पड़गी। डाक्टरों के द्वारा हाल में किए विरोधों में ये बात खास रही की उन्होंने आरक्षण के विरोध प्रदर्शन में किसी सरकारी संपत्ति को नुकसान नहीं पहुँचाया, और न ही किसी रैली में या साक्षात्कार में अपशब्दों का प्रयोग किया गया। मेरी नज़र में इस विरोध का ये भी एक खास पहलू था।

मेरा मानना है की हमें आगे बढ़ने के लिए अपने मानसिक स्तर को ऊपर उठाना होगा और पारिवारिक और निजी स्तर पर

1. हमें अपनी इज्ज़त स्वयं करनी पड़गी।
2. हमें हर दूसरे इंसान की भी इज्ज़त करनी सीखनी पड़गी।
3. इसके बाद हमें इज्ज़त की अपेक्षा रखनी चाहिए।

आगे के चिट्ठों में मैं रोज़मर्रा की जिन्दगी के साधारण उदाहरण पेश करूँगा, जब हम ग़लत तरीके से व्यवहार करते हैं, जबकि हम बेहतर तरीके से व्यवहार कर सकते हैं।

भारत के सुनहरे भविष्य की खोज में...

अनुराग

Wednesday, May 31, 2006

भारत में बढ़ता पागलपन

हर शाख़ पे उल्लु बैठा है, अंजा़में गुलिस्तां क्या होगा..

अगर हम भारत की वर्तमान स्थिति पर नज़र डालें तो बिलकुल यही महसूस होगा। दिल्ली में सामाजिक समता के इतने बड़े भक्त बैठे हैं कि वो इसके लिए सारी समझदारी छोड़कर, लाल कपड़े के पीछे पड़े साँड की तरह भाग रहें हैं। और इस भागमभाग में अपने साथ पूरे समाज को ध्वस्त करते चले जा रहें हैं। अर्जुन सिंह अपनी बुद्धिमानी का परिचय दे ही चुके हैं, और साथ देने के लिए मीरा कुमारी भी चलीं आईं। भाजपा ने तो खैर अपना ढीलमढाल रवैया जाहिर कर ही दिया।

गुजरात कुछ दिन से शांत था, तो समय बिताने के लिए लोग आमिर ख़ान के पीछे पड़ गये। अलीगढ़ में छोटी सी जगह पर मंदिर/मस्जिद बनाने के लिए झगड़ा किया, 24 बेगुनाह मारे गए। मुज्जफ्फरनगर में तथाकथित संस्कृति के रक्षकों ने कुछ किशोरों की पिटाई कर भारतीय संस्कृति को बहुत रौशन किया।

तमिलनाडू और आंध्र प्रदेश ने इसाईयों को लुभाने की कोशिश में दा विंची कोड पर रोक लगा दी। मुंबई में सरकार साल भर चिल्लाती रही की इस साल उसने बाढ़ से बचने के भरपूर प्रबंध किये हैं। एक बारिश में इज्ज़त धुल गयी।

मूर्खता और बेशर्मी का मानो साम्राज्य फैला हुआ हो। इसके बाद हम ये दावा करने से नहीं चूकते कि कुछ सालों में हम सबसे बड़ी शक्ति बन जाएंगे, और बहुत अमीर देश बन जाएंगे। फटी धोती पर रेशमी अचकन नहीं सुहाती। ये 8% प्रगति का मुलम्मा इतनी जल्दी उतरेगा की धोती भी नहीं बचेगी।

हमें अपनी सोच बड़ी करनी पड़गी, तभी आगे बढ़ पाएंगे। समाज में एक दूसरे की इज्ज़त करनी सीखनी पड़गी, तब किसी बाहर वाले के सामने आंखें उठा सकेंगे।

आमीन...

अनुराग

Wednesday, May 24, 2006

भस्मासुर बनते हम।

संदर्भ के लिए मैं सर्वप्रथम भस्मासुर की कहानी संक्षेप में बताता हूँ। भस्मासुर एक ऐसा राक्षस था जिसे वरदान था कि वो जिसके सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जाएगा। भस्मासुर ने इस शक्ति का गलत प्रयोग शुरू किया और स्वयं शिव जी को भस्म करने चला। शिव जी ने विष्णु जी से सहायता माँगी। विष्णु जी ने एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण किया, भस्मासुर को आकर्षित किया और नृत्य के लिए प्रेरित किया। नृत्य करते समय भस्मासुर विष्णु जी की ही तरह नृत्य करने लगा, और उचित मौका देखकर विष्णु जी ने अपने सिर पर हाथ रखा, जिसकी नकल शक्ति और काम के नशे में चूर भस्मासुर ने भी की। भस्मासुर अपने ही वरदान से भस्म हो गया।

यह कहानी यदि हम ध्यान दें तो वास्तव में हमारी अपनी ही है। बहुत सारे मुद्दे हैं जिन्हे हम घ्यान दें तो पाएंगे की हम धीरे-धीरे किन्तु बड़े निश्चय से मानव जाति के विनाश की ओर बढ़ रहे हैं। चाहे वह ग्लोबल वार्मिंग हो, पृथ्वी को हजारों बार नष्ट करने की ताकत वाले हथियार हों, बढ़ता अंतर्राष्ट्रीय तनाव हो, सामाजिक समस्याऐं हो, अथवा मानसिक असंतुष्टि हो। हम लोगों की तरफ से इन समस्याओं को बढ़ाने के प्रयास चालू हैं। इस चिट्ठे में फिलहाल मैं बी बी सी में छपी ग्लोबल वार्मिंग की खबर के बारे में बात करना चाहूँगा।

बी बी सी में छपी खबर के अनुसार अभी तक के ग्लोबल वार्मिंग के अनुमान लगभग 75% तक गलत हो सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो हम अपने विनाश की तरफ अपने अनुमानों से बहुत तेज़ आगे बढ़ रहें हैं। इतने सब पर भी हम सब भस्मासुर की तरह अपनी ताकत और शक्ति के नशे में चूर वस्तुस्थिति को स्वीकार करने के लिए नहीं तैयार हैं।

क्योटो संधि, जिसके अनुसार सभी राष्ट्रों को समयबद्ध तरीके से जहरीली गैसों का उत्सर्जन कम करना होगा, अभी तक लटकी पड़ी है। क्येंकि विश्व का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र इस तथ्य को मानने को तैयार नहीं है। निजी तौर पर हम कुछ करना चाहते नहीं या जिम्मेदारी मानने से इनकार करते हैं। बिजली का ज़रूरत से ज्यादा प्रयोग, तेल का अनावश्यक जलाना, सभी संसाधनों की अनावश्यक बर्बादी हमारी आदत बन चुके हैं। समस्या ये है कि हमें पहले ही काफी देर हो चुकी है, और हम अभी तक जैसे किसी ईश्वरीय भविष्यवाणी का इंतज़ार कर रहें हैं।

हम लोंगों को कम से कम निजी तौर पर अपनी पृथ्वी को बचाने के िलए सतत् प्रयास करने चाहिए। और दूसरों को इस बारे में प्रेरित भी करना चाहिए। शुरूआत के लिए कम्प्यूटर टेबल से उठने से पहले कम से कम माॅनीटर बन्द कर दीजिएगा।

अनुराग

मेरा पुराना चिट्ठा ऊर्जा अपव्यय के संदर्भ में

Wednesday, May 10, 2006

Help with Hindi

Hi,

Many of the visitors to this site find some difficulty in reading and/or inputting (typing) Hindi (Devnagri Script). I created this blog as one stop shop to solve these issues and I will try to update it with new information. It is mostly a combination of relevant links. I found Hindi Wikipedi to be quite informative in this regard.

Wikipedia Hindi

The following page gives information about how to view and also input (type) Hindi (Devnagri script) for different Operating Systems.

Viewing and inputting Devnagri Script

Some Hindi newspapers (Dainik Jagran, Amar Ujala) do not use standard fonts and they cannot be displayed properly in Mozilla Firefox. You can install the Padma Extension for firefox for better viewing of these news papers.

Most users buy Keyboard with a layout of US English. Although you can add several other layouts in the Operating Systems, or in other words the computer can understand the input in other languages, you need to know which key stand for what. You can always go ahead and buy stickers for language of your choice and paste them on your existing keyboard. You can buy the hindi stickers at Latkey site.

Please leave a comment if you need some more information regarding viewing or inputting Hindi.

Enjoi
Anurag