तरनतारन में तलवारबाजी, आगरा में पत्थरबाजी, सूरत में आगजनी ये सब हुआ एक दिन में। पूरे हफ्ते को जोड़ लें तो ट्रेनें फुकीं, महाराष्ट्र में सो अलग। सासाराम में एक दंपत्ति को जिंदा फूँक दिया। गैरजिम्मेदारी, लापरवाही, और निकम्मेपन का उदाहरण बना भागलपुर का पुल। |
Sunday, December 03, 2006
मेरा भारत महान
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3 टिप्पणियाँ:
हताश तब तक मत हो, जब तक दंगाईयों से ज्यादा उस काम पर चींता जताने वाले नागरीक इस देश में है.
सब राजनीतिक रोटी सेकने की कोशिशे हैं. इन सब में कुछ गुण्डातत्व भी फायदा उठा ले जाते हैं.
जब तक जाति, धर्म, तथा प्रांत के नाम पर वोट देते रहेंगे ये सब होता रहेगा.
गिलास खाली है या भरा,बात नज़रिए की है। नज़रिया बदलें हताशा को दूर भगाएं क्योकि नर हो न निऱाश करो मन को--
अराजक और व्याभिचारी समय में भी आशा की बात करना एक तरह की हताशा का ही लक्षण है.आशा के कुछ आधार तो होने चाहिए .
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