दरजी की दुकान पर ये बात सुनने में अच्छी लग सकती है, मगर सोचिये अगर कोई आपका हाथ काटने से पहले ये सवाल करे तो? एक और फिल्म देखी हाल में वो थी होटल रवांडा। तुत्सी और हुतु जातियों के बीच हो रहे गृह युद्ध की पृष्ठभूमि में बनी ये फिल्म आपको इन्सान होने पर शर्मसार कर देगी। कितना भी कड़ा दिल कर लीजिये, फिल्म देख कर आंसू तो आने ही हैं। एक दृश्य है फिल्म का जिसमें फिल्म का मुख्य किरदार पॉल सबेरे सबेरे धुंध में गाड़ी से आ रह था। अचानक गाड़ी झटके खाने लगी तो पॉल नीचे उतर कर देखता है की सारी सड़क पर लाशें बिछी हैं जिनपर गाड़ी झटके खा रही थी। एक और दृश्य है जिसमें पॉल अपनी बीवी को छत पर बडे प्यार से डिनर के लिए बुलाता है और फिर उसे बड़े प्यार से समझाता है की अगर उपद्रवी होटल में आ गए तो उसे किस तरह से छत से कूद कर जान देनी होगी। दस लाख से ऊपर लोगों की मौत और इससे ज्यादा लोगों का विस्थापन, ये था नतीजा इस गृह युद्ध का। बार बार यही सोच रहा था की इन्सान आख़िर क्या चाहता है? है अगर सच देखने की हिम्मत तो ज़रूर देखियेगा इन दोनों फिल्मों को। राग मेरी कुछ पसंदीदा फिल्मों की सूची यह देखिए। |
Sunday, June 10, 2007
पूरी बांह या आधी बांह?
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4 टिप्पणियाँ:
पूरी बांह या आधी बांह के बारे में तो सीमा कुमारजी बेहतर बता सकती हैं। सिनेमा की जानकारी अच्छी दी। देखो कभी देखने का मौका मिले शायद!
हम्म तो आप भी हॉलीवुड फिल्मों के शौकीन हैं। हमें भी इंग्लिश फिल्में बहुत अच्छी लगती हैं लेकिन हिन्दी में (डब) :)
अच्छा बता दिया. देखते हैं मौका निकालकर.
Un petit pour vous dire que votre blog est super!
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