किसी हिंदु मंदिर में अब ग़ैर हिंदुओं का आना मना कर दिया गया है। असम में हिंदी भाषियों का रहना मुहाल हो रहा है। कभी कभी महाराष्ट्र में दूसरे राज्य वालों को निकालने कि बात आती है, ब्रिटेन में इतने सालों से बसें डॉक्टरों के अब वहाँ बसे रहने में समस्या शुरू कर दी गयी है। इन्सान का इस प्रकार घूमना या यायावर होना ही उसकी प्रजाति के सफल होने का कारण रहा है। यद्यपि अब हमारे पास लाजवाब तकनीकें आ गयी हैं यात्रा करने के लिए और कहने को धरती छोटी हो गयी है, लेकिन हमारा दिमाग उससे भी ज्यादा छोटा हो गया है। देश की सीमायें बना के हमने लोगों के रहने और बसने की सीमायें तो निर्धारित कर दीं हैं, लेकिन हमारा सोच का छोटा होना उससे भी नहीं रुका। अब हम लोगों को अपने राज्य में नहीं घुसने देना चाहते, मोहल्ले में नहीं घुसने देना चाहते, अपने मंदिर और मस्जिद में नहीं घुसने देना चाहते। जाने क्या लगता है ऐसे सीमायें बनने वालों को? क्या पृथ्वी के उत्थान से हिंदु, मुसलमान या कोई और धर्म था? ये देश और राज्य की सीमायें हज़ारों लाखों साल से क्या ऐसी ही हैं? ये सब सीमायें हमारे जैसे इंसानों की ही बनाई गयी हैं और हम ही इसे बदल भी सकते हैं। धर्म से इसलिये भी मुझे नफरत हैं क्यूंकि ये बताता है की एक इन्सान दूसरे से अलग क्यों और कैसे है, इस बारे में पहले एक बार मैं यहाँ लिख चुका हूँ। जब तक ये मूर्खतापूर्ण बातें आम लोगों के दिलों में सीमा ना बनायें तब तक तो अच्छा है, लेकिन दुर्भाग्य की, ऎसी छोटी बातें धीरे धीरे आम लोगों के दिलों में भी दीवार बना लेती हैं.... राग |
Saturday, June 02, 2007
हम अपना दरवाज़ा बंद कर लें और तुम अपना
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4 टिप्पणियाँ:
एक बहुत बड़ा सपना है, मानवता के लिए धर्मविहीन, राष्ट्रविहीन दुनिया का अस्तित्व.
क्या हम देख पाएंगे.
बिल्कुल सही कह रहे हैं आप । इन सीमाओं को तोड़ने का एक बहुत सरल व सुन्दर उपाय है अन्तर्जातीय, अन्तर्प्रान्तीय, अन्तर्देशीय, अन्तर्धार्मिक विवाह । जब परिवार में इतनी विविधता होगी तो संकीर्णता की मानसिकता कैसे उपजेगी ?
घुघूती बासूती
सही कहा। खैर धीरे धीरे ही सही एक दिन ये फासले मिट जाएंगे।
यायावरी बाहर की भी हो सकती है और अन्दर (मन) की भी. पर जब आदमी केवल चिन्दियां बीनने वाला rag-picker) हो जाये तो कितनी भी यायावरी करे, संकीर्ण ही रहेगा.
चरित्र उदात्त होना चाहिये.
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