Saturday, June 02, 2007

हम अपना दरवाज़ा बंद कर लें और तुम अपना

किसी हिंदु मंदिर में अब ग़ैर हिंदुओं का आना मना कर दिया गया है असम में हिंदी भाषियों का रहना मुहाल हो रहा है। कभी कभी महाराष्ट्र में दूसरे राज्य वालों को निकालने कि बात आती है, ब्रिटेन में इतने सालों से बसें डॉक्टरों के अब वहाँ बसे रहने में समस्या शुरू कर दी गयी है।

जाने अब हम खुद को क्या समझने लगे हैं?

मनुष्य तो प्रकृति से ही यायावर है। यही कारण है कि इतने तरह के लोग दुनिया भर में बसें हैं। एक वृत्तचित्र देख रहा था जर्नी ऑफ़ मैनअब ये वृत्तचित्र मुख्यतः एक शोध है जो ये बताने का प्रयास करता है कि किस प्रकार मनुष्य कि शुरू की प्रजातियाँ अफ्रीका से दुनिया के और हिस्सों में फैली। इस वृत्तचित्र का पहला हिस्सा यू ट्यूब से यहाँ दिखाया है, बाक़ी के सारे हिस्से यू ट्यूब पर ही उपलब्ध हैं।



इन्सान का इस प्रकार घूमना या यायावर होना ही उसकी प्रजाति के सफल होने का कारण रहा है। यद्यपि अब हमारे पास लाजवाब तकनीकें आ गयी हैं यात्रा करने के लिए और कहने को धरती छोटी हो गयी है, लेकिन हमारा दिमाग उससे भी ज्यादा छोटा हो गया है। देश की सीमायें बना के हमने लोगों के रहने और बसने की सीमायें तो निर्धारित कर दीं हैं, लेकिन हमारा सोच का छोटा होना उससे भी नहीं रुका। अब हम लोगों को अपने राज्य में नहीं घुसने देना चाहते, मोहल्ले में नहीं घुसने देना चाहते, अपने मंदिर और मस्जिद में नहीं घुसने देना चाहते।

जाने क्या लगता है ऐसे सीमायें बनने वालों को? क्या पृथ्वी के उत्थान से हिंदु, मुसलमान या कोई और धर्म था? ये देश और राज्य की सीमायें हज़ारों लाखों साल से क्या ऐसी ही हैं? ये सब सीमायें हमारे जैसे इंसानों की ही बनाई गयी हैं और हम ही इसे बदल भी सकते हैं। धर्म से इसलिये भी मुझे नफरत हैं क्यूंकि ये बताता है की एक इन्सान दूसरे से अलग क्यों और कैसे है, इस बारे में पहले एक बार मैं यहाँ लिख चुका हूँ

जब तक ये मूर्खतापूर्ण बातें आम लोगों के दिलों में सीमा ना बनायें तब तक तो अच्छा है, लेकिन दुर्भाग्य की, ऎसी छोटी बातें धीरे धीरे आम लोगों के दिलों में भी दीवार बना लेती हैं....

राग

4 टिप्पणियाँ:

Anonymous said...

एक बहुत बड़ा सपना है, मानवता के लिए धर्मविहीन, राष्ट्रविहीन दुनिया का अस्तित्व.
क्या हम देख पाएंगे.

ghughutibasuti said...

बिल्कुल सही कह रहे हैं आप । इन सीमाओं को तोड़ने का एक बहुत सरल व सुन्दर उपाय है अन्तर्जातीय, अन्तर्प्रान्तीय, अन्तर्देशीय, अन्तर्धार्मिक विवाह । जब परिवार में इतनी विविधता होगी तो संकीर्णता की मानसिकता कैसे उपजेगी ?
घुघूती बासूती

ePandit said...

सही कहा। खैर धीरे धीरे ही सही एक दिन ये फासले मिट जाएंगे।

Gyan Dutt Pandey said...

यायावरी बाहर की भी हो सकती है और अन्दर (मन) की भी. पर जब आदमी केवल चिन्दियां बीनने वाला rag-picker) हो जाये तो कितनी भी यायावरी करे, संकीर्ण ही रहेगा.
चरित्र उदात्त होना चाहिये.