Sunday, August 20, 2006

हिन्दुस्तान का असमंजस ः भगवान भी मूर्ख बनाने आ पहुँचे

अब और क्या कहें? वहाँ दिल्ली मे हमारी सरकार आरक्षण का बिल केबिनट की बैठक में पास करने जा रही है और इधर भारतवासियों को मूर्तियों को दूध पिलाने से फुरसत नहीं है। मुझ् लगता है कि भारत की अधिकतर जनता इतनी हताश हो चुकी है कि उसका भरोसा अब सिर्फ इन टोने टोटकों पर रह गया है। अब भगवान के धरती पर आने की ही प्रतीक्षा है।

सबसे मजे़दार तो ये समाचार चैनल है जो कि सबसे गैर ज़रूरी खबर का जोर शोर से प्रचार करते हैं। अब ये खबर तो इतनी बेकार है कि और लिखने की इच्छा कर ही नहीं रही। बस God Bless India

अनुराग

Thursday, August 10, 2006

करण जौहर का एक और तमाशा...

करण जौहर साहब फिर एक और एसे सिनेमा (कभी अलविदा ना कहना) के साथ आ रहे हैं जो पौने चार घंटे लंबा है (बाप रे बाप), उसमे लंबे-लंबे रोने धोने के सीन होंगे, जीवन से बड़े फ्रेम होंगे और काफी उपदेश होंगे। मेरी तो इच्छा पौने चार घंटे सुन के ही खत्म हो गई।

सिनेमा के बाद शाहरुख खान की बासी एक्टिंग की बड़ी तारीफ होगी, सारा का सारा मीडिया भी इसी में जुट जाएगा। आखिर करन जौहर सभी जगह पैसा लगाते जो हैं ;)। जी सिने अवार्ड में सारे के सारे अवार्ड इसी को मिलेंगे। शाहरुख खान सर्वोत्तम अभिनेता, बाकी सब को भी कुछ ना कुछ मिलेगा ही।

थोड़ा बहुत फिल्मफेयर में भी मिलेगा ही।

सोच रह हूँ कि मुझे इतना कैसे पता है...

संपादित- ये लीजिए मेरी बात सच करती एक दर्शक की टिप्पणी।
आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं. तरन आदर्श जैसे समीक्षक पहले से ही गुणगान शुरू कर चुके हैं. बॉलीवुड में समीक्षकों के भी गुट हैं. (उदाहरण के लिए- सुभाष के. झा भूल के भी आमिर की तारीफ़ में कोई वाक्य नहीं लिख सकता.)फ़िल्म देखी. साढ़े तीन घंटे वाला प्रिंट था. लगा आराम से ढाई घंटे में काम चलाया जा सकता था. दो गाने तो सीधे-सीधे ठूंसे हुए लग रहे थे.एक्टिंग के नाम पर सिर्फ़ रानी की एक्टिंग से काम चलाइए. शाहरुख और प्रीटि ही नहीं, बल्कि अमिताभ की भी ओवरएक्टिंग है. अमिताभ एक छिछोरे पात्र की भूमिका में एक्टिंग करते हुए पहली बार अपने बेटे से पीछे छूट गए हैं. वो भी तब, जब सबको पता है अभिषेक ख़ुद कितने बड़े अभिनेता हैं! फ़िल्म में शाहरुख़ ख़ान भूल जाते हैं कि उन्हें कितना लंगड़ाना है- मतलब, कभी झटके-मार लंगड़ा बन जाते हैं, कभी हल्का लंगड़ापन ले के चलते हैं, तो कभी-कभी कोई लंगड़ापन नहीं. (होठों को थरथरा के भर्राई आवाज़ में बोलने मात्र को एक्टिंग मानते हों, तब तो शाहरूख़ ने ज़बरदस्त एक्टिंग की है.)कहानी बिल्कुल ही बेतुकी तो है ही, पटकथा में अनेक झोल है. शाहरुख़ ख़ान फ़िल्म के शुरू में फ़ुटबॉलर हैं और निर्देशक की बलिहारी एक उदाहरण देखें- शाहरुख़ को पेनाल्टी किक लेना है तो वह 10-12 मीटर दूर से(क्रिकेट के तेज़ गेंदबाज़ जैसी तेज़ी से) भाग कर आते हैं गेंद को ठोकर मानने के लिए! अभी-अभी विश्व कप फ़ुटबॉल के दर्जनों मैच देखे थे- किसी देश के किसी खिलाड़ी ने किक लेने के लिए इतनी लंबी दौड़ नहीं लगाई!अच्छी चीज़ों में से हैं- दो गाने, ख़ास कर वो गाना जिसमें ढोलक का बेहतरीन प्रयोग है. और न्यूयॉर्क की ज़बरदस्त सिनेमोटोग्राफ़ी!

Tuesday, August 08, 2006

भारत सरकार के जालस्थल की शिकायत।

मैने भारत सरकार के जालस्थलों के बारे में एक शिकायत दर्ज कराई थी। उनका जवाब यहाँ पढ़ें।

National Portal of India: Feedback


अनुराग

Sunday, July 23, 2006

हमारा पैसा, हमारा हिसाब - सूचना का अधिकार और जन आंदोलन।




संपादित (दिनांकः जुलाई 31, 2006) ऊपर विडियो में दिख रहे एक कार्यकर्ता हैं, श्री अरविंद केजरीवाल। इनकी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के लिए इन्हें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। आप इन्हें parivartan_india@rediffmail.com पर बधाई दे सकते हैं।

आज ही कुछ मित्रों (AID-Association for India's Development-Blacksburg, Va, Chapter) ने सूचना के अधिकार पर चल रही ताजा बहस के संबंध में जानकारी भेजी और इस विडियो का स्रोत भी दिया।

सन् २००१ में भारत सरकार ने आम जनता को सूचना का अधिकार दिया था। इस अधिकार के अनुसार कोई भी आम व्यक्ति सरकार से किसी सरकारी परियोजना के संबंध में सूचना प्राप्त कर सकता है। अब मुद्दा ये है कि कोई भी सरकारी परियोजना कई माध्यमों से होती हुई अपने अंजाम तक पहुँचती है। और किसी भी परियोजना में क्या होगा, यह माध्यमों द्वारा दी गई टिप्पणी, सुझाव और प्रतिक्रियाओं पर निर्भर करता है।

अब कांग्रेस सरकार और इसके प्रधानमंत्री जो भारत के शायद सबसे बड़े दुर्भाग्य हैं, एक प्रस्ताव ला रहे हैं जिसके अनुसार सूचना के अधिकार के अन्तर्गत आपको किसी भी परियोजना के अंजाम की जानकारी प्राप्त हो सकेगी, लेकिन माध्यमों में क्या हुआ ये सरकारी राज हो जाएगा। उदाहरण के लिए अगर आप पूछें कि सूचना के अधिकार में संशोधन किसने प्रस्तुत किया? सरकारी राज़। किसने समर्थन किया? राज़। किसने विरोध किया? राज़। किस आधार पर समर्थन या विरोध हुआ? राज़। क्या किसी और की राय ली गई? राज़। उनके क्या विचार थे? राज़। राज़, राज़ और राज़।

हमें इस बात का एहसास होना चाहिए की सूचना का अधिकार हमारे हाथों में भ्रष्टाचार के खिलाफ बहुत बड़ा हथियार है।कई लोग इस संदर्भ में आंदोलन कर रहे हैं और मेरी तरह सरकार से इस संशोधन को वापिस लेने का आग्रह कर रहें हैं। आप कृपया इस बारे में और जानकारी प्राप्त करें और इस जाल आधारित (web based) निवेदन पर हस्ताक्षर करें

ऊपर, सूचना के अधिकार की मदद से चलाए गए एक सामाजिक आंदोलन (परिवर्तन की मदद से) का विडियो ज़रूर देखें। ये विडियो आपको सूचना के अधिकार के बारे में ना सिर्फ जानकारी देगा, बल्कि आम व्यक्ति के स्तर पर आंदोलन कैसे चलाया जाता है, इसका भी दृष्टिकोण देगा।

मेरा ये चिट्ठा संक्षिप्त रुप से हिन्दी में लिखने का ये कारण है कि मैं इतना महत्वपूर्ण मुद्दा ज्यादा से ज्याद लोगों तक पहुँचा सकूँ। विचार आमंत्रित हैं।

इस विषय पर अन्य स्रोत
इंडियन एक्सप्रेस-१
इंडियन एक्सप्रेस-२

सूचना के अधिकार से हल हुई कुछ समस्याएँ।

अनुराग मिश्र

Wednesday, July 19, 2006

इंटरनेट और हिन्दी

ये बात बड़ी ही रोचक है की मुख्यतः अंग्रेज़ी भाषा में विकसित हुआ कंप्यूटर और इंटरनेट आज बड़े ही बेहतरीन तरीके से अन्य भाषाओं में इस्तेमाल हो रहा है। आज अंग्रेज़ी का न्यूनतम ज्ञान रखने वाला भी कंप्यूटर और इंटरनेट भलीभांती प्रयोग कर सकता है।

हिन्दी भाषा सीखने, समझने, और अच्छे लेखों के लिए इंटरनेट पर अनगिनत स्रोत उपलब्ध हैं। एक सबसे बढ़िया शुरुआती स्रोत है हिन्दी विकिपीडिया । यदि आप हिन्दी के अच्छे जानकार हैं तो आप इस स्रोत को अपना योगदान भी दे सकते हैं।
बी बी सी हिन्दी, हिन्दी समाचारों का अच्छा स्रोत है। यूँ तो अन्य कई और हिन्दी समाचार पत्र भी हैं जैसे दैनिक जागरण, पंजाब केसरी, अमर उजाला और अन्य। लेकिन बी बी सी के अलावा लगभग सभी हिन्दी समाचार पत्र बदतरीन वेब निर्माण का नमूना हैं। ये समाचार पत्र यूनिकोड (अक्षर छापने का मानक) ना इस्तेमाल करके अपना ही फोंट प्रयोग करते हैं, जिससे इन्हें इंटरनेट एक्सप्लोरर के अलावा अन्य किसी इंटरनेट ब्राउज़र पर देखना मुश्किल होता है। ये समाचार पत्र आर एस एस फीड से भी नहीं पढ़े जा सकते। इनमें एक नाम भारत के सामाजिक न्याय मंत्रालय का भी जोड़ लीजीए।

इंटरनेट पर आजकल आपको कई हिन्दी चिट्ठाकार मिल जाएंगे। इनमें से अधिकतर काफी बेहतरीन लेखन करते हैं। इनकी शैली सहज और आधुनिक है। हिन्दी चिट्ठों के बढ़िया स्रोत हैं, अक्षरग्राम, नारद, देसीपंडित एवं अन्य कई। इन स्रोतो पर पहुँच कर आपकी आँखें इंटरनेट पर हिन्दी जगत की ओर खुल जाएंगी, और आपको कई और बढ़िया साइट मिलेंगी। मेरी पसंद के कुछ स्रोत मैने अपने हिन्दी चिट्ठों की साइट में बाईं तरफ चिन्हित किए हैं।

इन चिट्ठाकारों को देखकर ये संतोष होता है कि हिन्दी के जानकार इंटरनेट का भरपूर प्रयोग कर रहे हैं और इससे भाषा का पर्याप्त प्रसार भी हो रहा है। उम्मीद है कि ये चलन और बढ़ेगा।

अनुराग

Wednesday, July 05, 2006

सरकार या सरकस

भारतवर्ष की यूपीए सरकार को देखकर ऐसा ही लगता है। जिसकी जो मर्जी़ आए वही करता है। कुछ दिन पहले अर्जुन सिंह को अचानक सामाजिक न्याय का भूत सवार हुआ और उन्होंने आरक्षण का शगूफ़ा छोड़ दिया। नतीजा सबके सामने है। मीरा कुमार को लगा की वो कहीं सामाजिक न्याय की रेस में पीछे ना छूट जाए तो उन्होंने खुलेआम सभी निजी कंपनिओं को अपने यहाँ आरक्षण लगाने की धमकी दे डाली।

किसी तरह इन सब पर भी देश चल रहा था तो एकदम बेकाम स्वास्थ्य मंत्री ने एम्स के निदेशक को बर्खास्त कर दिया। अब स्वास्थ्य मंत्री के सामने एम्स के निदेशक की काबिलियत की क्या बात कहें। बस इतना काफी है की दिल के डाक्टरों में वे भारत में सर्वोत्तम माने जाते हैं, हाँ अलबत्ता कोई चुनाव नहीं जीते हैं बेचारे।

अब इसे स्वास्थ्य मंत्री जी की बदले की कार्रवाई ना समझें तो क्या कहें? उधर सरकार हड़ताल से लौटे डाॅक्टरों को तनख्वाह नहीं दे रही है, जो की सीधे सीधे उच्चतम न्यायालय की आज्ञा की अवहेलना है।

जब ये सरकार उच्चतम न्यायालय को ठेंगा दिखा सकती है तो हम और आप हैं ही क्या?

प्रधानमंत्री जी की तो क्या ही सुनाएं? मेरी नज़र में वे भारत के हर नागरिक की बेबसी और मूर्खता के जीते जागते उदाहरण हैं। बेशर्मी की हद ये की विदर्भ में इतने किसानों की आत्महत्या के बाद वहाँ जाकर थोड़ा मलहम लगाकर बोले की सिर्फ़ खेती से कुछ नहीं होगा, किसानों को और भी धंधे करने चाहिए। इतने होनहार प्रधानमंत्री से ये बात सुन के शर्म तो आती ही है, बेबसी ज्यादा महसूस होती है।

मूर्खता का तमाशा करती ये सरकार ना जाने कब तक हमारे सर पर सरकस करेगी?

अनुराग

Monday, June 05, 2006

विनय और आत्मसम्मान की कमी

संपादितः जुलाई 5
बदतमीज़ी का एक और सबूत। आर्मी के जवानों की हरकत।

संपादितः जून 21

मेरे चिट्ठे को साबित करता एक लेख। मुंबई दुनिया का सबसे अशिष्ट शहर।


पिछले चिट्ठे में मैंने भारत में बढ़ती कई समस्याओं की तरफ एक साथ ध्यान दिलाने का प्रयास किया था। हम सब अपनी तरफ से इनके हल समझने और सुलझाने का प्रयास करते हैं। ये चिट्ठा मेरी तरफ से इस दिशा में एक कदम है।

मेरा मानना है की हमारी आधी से ज्यादा समस्याओं का कारण है हममें विनय और आत्मसम्मान की कमी। आप किसी भी समस्या के मूल में जाएंगे तो आपको इस बात का एहसास होगा की...

1. हम अपनी इज्ज़त खुद नहीं करते।
2. हम दूसरों की भी इज्ज़त नहीं करते।
3. हम सबसे अपनी इज्ज़त की अपेक्षा रखते हैं।

इन सब के समर्थन में मैं साधारण जि़न्दगी के उदाहरण पेश करूंगा और हो सका तो इनका हल बताने का प्रयास करूंगा।

हम जहाँ खाना खाते हैं वहीं गन्दगी करते हैं। उदाहरण, अपना घर छोड़ कर सब जगह।

हम छोटे रेस्तरां के बैरे से, सफाई करने वाले कर्मचारी से, सब्जी बेचने वाले से, सरकारी दफ्तर में (जैसे बैंक, डाकघर) उपभोक्ता से ऐसे बात करते हैं, जैसे वो कटखना कुत्ता हो। पुलिस वाला/वाली किसी को पकड़ ले तो एसे थप्पड़ मारते हैं, कि कोई जानवर को भी ना मारे (अपराध सिद्ध हो जाए, तब तो बात ही अलग)।

अनजाने में किसी से नज़र मिल जाए तो सिर झुकाके नमस्कार करने के बजाए ऐसे नज़र चुरा लेते हैं, जैसे भूत देख लिया हो।

यातायात के नियम तोड़ने में शेखी समझते हैं। ठीक जगह गाड़ी पार्क करने में शरम आती है। पुलिसवाला या कोई अन्य मना करे और हमारी पहुँच ऊँची हो तो उससे भी बदतमीजी करते हैं।

कहीं भी थूकना हम अधिकार समझते हैं।और थूकते वक्त इस बात का तो बिलकुल ख्याल नहीं करते की किसी पर छींटा ना पड़ जाए।कोई टोके तो उससे लड़ भी जाते हैं।

अधिकारी हो कर जिम्मेदारी से काम नहीं करते, शिक्षक हो कर ठीक से पढ़ाना नहीं चाहते, स्वयं विद्यार्थियों को सम्मान नहीं देते और सम्मान की पूरी अपेक्षा रखते हैं। कुछ ऐसे भी बाप हैं जो दफ्तर में भ्रष्टाचार करते हैं और घऱ में इसका गुणगान भी करते हैं। इसके बाद अपने बच्चों से सम्मान की अपेक्षा करते हैं।

महिलाओं की इज्ज़त तो जैसे खून में ही नहीं है, इसलिए हर औरत खासकर जो पहुंच में हो उससे बदतमीज़ी करते हैं, बलात्कार करते हैं, कुछ ना हो सका तो घटिया "कमेंट" देने से नहीं चूकते।

वृद्धावस्था में पहुँच कर नई पीढ़ी को न सिर्फ अतिशय सुझाव देते हैं, बल्कि अपनी तरह से चलाना भी चाहते हैं। राजनीति इसका प्रबल उदाहरण है। ये समाचार तो बहुत शर्मनाक है कि तमिलनाडू के मुख्यमंत्री 83 साल के हैं, और कुछ लोग इस मौके पर जश्न मना रहे हैं।

हम अपने वोट की कीमत न समझते हैं, न समझना चाहते हैं। हम अपने सुझाव की कीमत नहीं समझते, और न अपनी बातों की। समाचार का शीर्षक पढ़के राय बना लेते हैं और दंगा करते हैं। राष्ट्रीय या स्थानीय किसी भी मुद्दे पर जानकारी इकट्ठा नहीं करना चाहते जब तक खुद पर मुसीबत ना आ जाए। उसके बाद किसी भी नेता की बातों में आकर बवाल करतें हैं।अपनी ही सरकारी संपत्ति को खुल के नष्ट करते हैं।

24 घंटे बिजली ना मिलने को अपनी किस्मत समझते हैं। समय पर पानी ना मिलना, नल में गंदा पानी आना रोज़मर्रा की बात है।

हमें आगे बढ़ने के लिए, समस्याओं से निजात पाने के लिए खुद का आत्मसम्मान बढ़ाना पड़ेगा।दूसरों की इज्ज़त करनी पड़गी, तब हमारी बातों का कोई अर्थ होगा, समाज में इज्ज़त होगी, राजनीतिज्ञों को हमारी बात माननी पड़गी। डाक्टरों के द्वारा हाल में किए विरोधों में ये बात खास रही की उन्होंने आरक्षण के विरोध प्रदर्शन में किसी सरकारी संपत्ति को नुकसान नहीं पहुँचाया, और न ही किसी रैली में या साक्षात्कार में अपशब्दों का प्रयोग किया गया। मेरी नज़र में इस विरोध का ये भी एक खास पहलू था।

मेरा मानना है की हमें आगे बढ़ने के लिए अपने मानसिक स्तर को ऊपर उठाना होगा और पारिवारिक और निजी स्तर पर

1. हमें अपनी इज्ज़त स्वयं करनी पड़गी।
2. हमें हर दूसरे इंसान की भी इज्ज़त करनी सीखनी पड़गी।
3. इसके बाद हमें इज्ज़त की अपेक्षा रखनी चाहिए।

आगे के चिट्ठों में मैं रोज़मर्रा की जिन्दगी के साधारण उदाहरण पेश करूँगा, जब हम ग़लत तरीके से व्यवहार करते हैं, जबकि हम बेहतर तरीके से व्यवहार कर सकते हैं।

भारत के सुनहरे भविष्य की खोज में...

अनुराग