अभी थोड़ी देर पहले रवि रतलामी जीं के चिट्ठे पर ये विषय पढ़ा जिसमें लेखक हमसे ये पूछ रहे हैं कि हमें किस बात का घमंड है? बहुत सोचा, बहुत सोचा पर कुछ खास समझ नहीं आया तो स्वदेस फिल्म का यू ट्यूब से विडिओ खोजा। मूवी तो आपने देखी ही होगी मगर ये दृश्य बढ़िया रहेगा, याद ताज़ा करने के लिए। मेरे ख़याल से ये दृश्य इस फिल्म का मुख्य दृश्य था। आपने फिल्म देखी हो या ना देखी हो पर इस विडिओ के शुरू के पांच मिनट ज़रूर देखिए। शायद रवि जीं के चिट्ठे पर पूछे गए सवाल का जवाब भी मिल जाये। अभी आज सुबह किसी को भारत में फ़ोन किया, तो उन्होने बताया कि उनका दिल्ली जाने का कार्यक्रम रद्द हो गया है, क्यूंकि माहौल खराब है, गुर्जरों के विरोध के कारण। मैंने उनसे कहा कि हिंदुस्तान में सब बौरा गए हैं क्या कि कोई भी समस्या हो, सब राशनपानी लेकर सड़क पर उतर जाते हैं और तोड़ फोड़ चालू हो जाती है। उन्होंने जवाब में कहा कि ये तो सब जगह है अब अमेरिका में ही किसी ने धमकी दी है कि वो ९/११ वाले आक्रमण से कुछ बड़ा करेगा और वर्जीनिया टेक में हुई घटना से कुछ बड़ा करेगा। और जो ये सब करेगा वो एक अमेरिकी ही है। उन्होने कहा कि भारत में तो यह समाचार में ख़ूब आ भी रहा है। मुझे लगा कि जिस खबर कि अमेरिका में कुछ खास क़दर नहीं है, उसे भारत में क्यूँकर लगातार दिखाया जा रहा है पता नहीं (वैसे ये कुछ दिन पुरानी खबर है)। और इसके अलावा ये कि इस बात का मेरी कही बात का इस बात से क्या संबंध है? किस बात का हमें घमंड है हमें जो हम अपनी कमियाँ नहीं स्वीकार करते या करना चाहते? राग |
Saturday, June 02, 2007
हम अपनेआप को क्या समझते हैं?
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1 टिप्पणियाँ:
मुझे लगता है कि भारत में अब समग्र रूपांतरण की ज़रूरत है। नहीं तो ऐसे हालात बदस्तूर जारी ही रहेंगे।
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