आज माउंटेन व्यू, कैलिफोर्निया में एल कमीनो रीयाल सड़क पर 22 नंबर की बस पर ये प्रचार देखा. आप भी देखें. ~राग |
Wednesday, August 27, 2008
मैक्डानल्ड का माउंटेन व्यू में हिन्दी में प्रचार
Monday, July 02, 2007
मिनिआपोलिस की हमारी यात्रा
अमेरिकन सोसाइटी ऑफ़ एग्रिकल्चरल ऎंड बायोलोजिकल इंजीनीयर्स (ASABE) की वार्षिक संगोष्ठी इस बार मिनिआपोलिस में आयोजित की गयी थी। इस बार संगोष्ठी में हम भी अपने शोध का हिस्सा प्रस्तुत करने गए the। मिनिआपोलिस भी एक बड़ा शहर है। सैंट पॉल के साथ इन दोनो शहरों को ट्विन सिटीज़ भी कहा जाता है। ब्लैक्स्बर्ग से १८ घंटा गाड़ी चलाकर यानी करीब १००० मील, हम शनिवार कि रात मिनिआपोलिस से सटे ब्लूमिन्गटन में पहुंचे। उसके बाद चार दिन संगोष्ठी में कैसे बीत गए पता नहीं चला। इस बीच कई पुराने मित्रों से मिलना भी हुआ। इलाहबाद कृषी संस्थान से पढ़े हुए लोगों की एक येक मीटिंग भी आयोजित थी। खाने पीने के अलावा इस बात पर भी विचार विमर्श किया गया कि कि अपने संस्थान को किस प्रकार सहयोग दे सकते हैं। मिनिआपोलिस में कई भारतीय रेस्त्रां हैं, और ये खाने पीने के लिए बढ़िया जगह है। मुख्य शहर या डाउनटाउन काफी खूबसूरत है। डाउनटाउन की सारी इमारतें एक दूसरे से स्काईवे के द्वारा जुड़ी हुईं हैं। यानि आप बाहर निकले बिना किसी भी इमारत से किसी भी इमारत में जा सकते हैं। एसा इसलिए है, क्यूँकि सर्दियों में यहाँ न्यूनतम तापमान आसानी से शून्य से ३० डिग्री नीचे चला जाता है, और तब पैदल चल पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। मिनेसोटा राज्य जिसकी राजधानी मिनिआपोलिस है को झीलों का राज्य भी कहा जाता है, क्यूंकि यहाँ करीब १०००० झीलें हैं। मिनिअपोलिस के आस पास भी कई झीलें हैं, जिनको उनकी प्राकृतिक अवस्था में रखने का प्रयास किया जाता है। इसलिये भरे पूरे शहर से सटी हुई झीलें एकदम अलग ही दुनिया में ले जाती हैं। मिनिआपोलिस में अमरीका का सबसे बड़ा शॉपिंग मॉल भी है। इस मॉल के अन्दर एक एक्वेरियम है, एक थीम पार्क है, और सैकड़ों दुकानें तो खैर है ही। इस मॉल में भी हमने काफी समय बताया। संगोष्ठी के अन्तिम दिन हमारा अंत में प्रस्तुतीकरण था। अब चूंकि अगले दिन सबेरे ४ बजे निकलना था ब्लैक्स्बर्ग के लिए, इसलिये अन्तिम रात को जल्दी ही सुत गए। रास्ते में समय पास करने के लिए गाड़ी में कई खेल खेले, और ४ जुलाई को बजाने के लिए ख़ूब सारे पटाखे भी खरीदे। थोड़ी बहुत कहानी ये तसवीरें बता देंगी। अब अगली यात्रा बहुत जल्दी ही सैन फ़्रांसिस्को की है। पिछली बार जो जगहें ठीक से नहीं देख पाए थे, उनके बारे में बताएँगे। और हाँ इस बार कैमरा नहीं भूलूंगा। राग |
Sunday, June 10, 2007
पूरी बांह या आधी बांह?
दरजी की दुकान पर ये बात सुनने में अच्छी लग सकती है, मगर सोचिये अगर कोई आपका हाथ काटने से पहले ये सवाल करे तो? एक और फिल्म देखी हाल में वो थी होटल रवांडा। तुत्सी और हुतु जातियों के बीच हो रहे गृह युद्ध की पृष्ठभूमि में बनी ये फिल्म आपको इन्सान होने पर शर्मसार कर देगी। कितना भी कड़ा दिल कर लीजिये, फिल्म देख कर आंसू तो आने ही हैं। एक दृश्य है फिल्म का जिसमें फिल्म का मुख्य किरदार पॉल सबेरे सबेरे धुंध में गाड़ी से आ रह था। अचानक गाड़ी झटके खाने लगी तो पॉल नीचे उतर कर देखता है की सारी सड़क पर लाशें बिछी हैं जिनपर गाड़ी झटके खा रही थी। एक और दृश्य है जिसमें पॉल अपनी बीवी को छत पर बडे प्यार से डिनर के लिए बुलाता है और फिर उसे बड़े प्यार से समझाता है की अगर उपद्रवी होटल में आ गए तो उसे किस तरह से छत से कूद कर जान देनी होगी। दस लाख से ऊपर लोगों की मौत और इससे ज्यादा लोगों का विस्थापन, ये था नतीजा इस गृह युद्ध का। बार बार यही सोच रहा था की इन्सान आख़िर क्या चाहता है? है अगर सच देखने की हिम्मत तो ज़रूर देखियेगा इन दोनों फिल्मों को। राग मेरी कुछ पसंदीदा फिल्मों की सूची यह देखिए। |
Saturday, June 02, 2007
हम अपनेआप को क्या समझते हैं?
अभी थोड़ी देर पहले रवि रतलामी जीं के चिट्ठे पर ये विषय पढ़ा जिसमें लेखक हमसे ये पूछ रहे हैं कि हमें किस बात का घमंड है? बहुत सोचा, बहुत सोचा पर कुछ खास समझ नहीं आया तो स्वदेस फिल्म का यू ट्यूब से विडिओ खोजा। मूवी तो आपने देखी ही होगी मगर ये दृश्य बढ़िया रहेगा, याद ताज़ा करने के लिए। मेरे ख़याल से ये दृश्य इस फिल्म का मुख्य दृश्य था। आपने फिल्म देखी हो या ना देखी हो पर इस विडिओ के शुरू के पांच मिनट ज़रूर देखिए। शायद रवि जीं के चिट्ठे पर पूछे गए सवाल का जवाब भी मिल जाये। अभी आज सुबह किसी को भारत में फ़ोन किया, तो उन्होने बताया कि उनका दिल्ली जाने का कार्यक्रम रद्द हो गया है, क्यूंकि माहौल खराब है, गुर्जरों के विरोध के कारण। मैंने उनसे कहा कि हिंदुस्तान में सब बौरा गए हैं क्या कि कोई भी समस्या हो, सब राशनपानी लेकर सड़क पर उतर जाते हैं और तोड़ फोड़ चालू हो जाती है। उन्होंने जवाब में कहा कि ये तो सब जगह है अब अमेरिका में ही किसी ने धमकी दी है कि वो ९/११ वाले आक्रमण से कुछ बड़ा करेगा और वर्जीनिया टेक में हुई घटना से कुछ बड़ा करेगा। और जो ये सब करेगा वो एक अमेरिकी ही है। उन्होने कहा कि भारत में तो यह समाचार में ख़ूब आ भी रहा है। मुझे लगा कि जिस खबर कि अमेरिका में कुछ खास क़दर नहीं है, उसे भारत में क्यूँकर लगातार दिखाया जा रहा है पता नहीं (वैसे ये कुछ दिन पुरानी खबर है)। और इसके अलावा ये कि इस बात का मेरी कही बात का इस बात से क्या संबंध है? किस बात का हमें घमंड है हमें जो हम अपनी कमियाँ नहीं स्वीकार करते या करना चाहते? राग |
हम अपना दरवाज़ा बंद कर लें और तुम अपना
किसी हिंदु मंदिर में अब ग़ैर हिंदुओं का आना मना कर दिया गया है। असम में हिंदी भाषियों का रहना मुहाल हो रहा है। कभी कभी महाराष्ट्र में दूसरे राज्य वालों को निकालने कि बात आती है, ब्रिटेन में इतने सालों से बसें डॉक्टरों के अब वहाँ बसे रहने में समस्या शुरू कर दी गयी है। इन्सान का इस प्रकार घूमना या यायावर होना ही उसकी प्रजाति के सफल होने का कारण रहा है। यद्यपि अब हमारे पास लाजवाब तकनीकें आ गयी हैं यात्रा करने के लिए और कहने को धरती छोटी हो गयी है, लेकिन हमारा दिमाग उससे भी ज्यादा छोटा हो गया है। देश की सीमायें बना के हमने लोगों के रहने और बसने की सीमायें तो निर्धारित कर दीं हैं, लेकिन हमारा सोच का छोटा होना उससे भी नहीं रुका। अब हम लोगों को अपने राज्य में नहीं घुसने देना चाहते, मोहल्ले में नहीं घुसने देना चाहते, अपने मंदिर और मस्जिद में नहीं घुसने देना चाहते। जाने क्या लगता है ऐसे सीमायें बनने वालों को? क्या पृथ्वी के उत्थान से हिंदु, मुसलमान या कोई और धर्म था? ये देश और राज्य की सीमायें हज़ारों लाखों साल से क्या ऐसी ही हैं? ये सब सीमायें हमारे जैसे इंसानों की ही बनाई गयी हैं और हम ही इसे बदल भी सकते हैं। धर्म से इसलिये भी मुझे नफरत हैं क्यूंकि ये बताता है की एक इन्सान दूसरे से अलग क्यों और कैसे है, इस बारे में पहले एक बार मैं यहाँ लिख चुका हूँ। जब तक ये मूर्खतापूर्ण बातें आम लोगों के दिलों में सीमा ना बनायें तब तक तो अच्छा है, लेकिन दुर्भाग्य की, ऎसी छोटी बातें धीरे धीरे आम लोगों के दिलों में भी दीवार बना लेती हैं.... राग |
Sunday, May 27, 2007
स्पाइडरमैन - ३ देख ली
वैसे देखे हुए तो करीब अब एक हफ्ता हो ही गया। बढ़िया फिल्म है। अब स्पाइडरमैन की फिल्म में एक्शन, स्टंट, और बेहतरीन प्रभाव तो होते ही हैं, लेकिन इसके अलावा भी कहानी में एक खास बात होती है जो आपको बाँध कर रखती है। स्पाइडरमैन श्रंखला कि मैंने तीनों फिल्में देखीं है और कई कई बार देखी हैं। मूवी के अपने कुछ खास पल हैं। पीटर पार्कर और मैरी जेन का मकड़ी के जाल पर बैठ कर बातें और प्यार करने का दृश्य बड़ा ही खूबसूरत बना है। एक बहुत ही महत्वपूर्ण दृश्य तब है जब पीटर पार्कर अपनी आंटी से कहता है की वो मैरी से शादी करने के लिए कहेगा। इस समय बाक़ी बातों के अलावा पीटर कि आंटी उसे बताती है की शादी से पहले इस बात का वादा करो कि खुद से आगे हमेशा अपनी पत्नी को रखोगे। और ये भी की लड़कियों से शादी के लिए पूछना उनके लिए एक बहुत खास पल होता है, और इसको जितना खूबसूरत बना सको, बनाना। अब मैं पीटर कि आंटी के सारे उदगार बता दूंगा तो आपका मूवी का मज़ा खराब हो जाएगा। स्पाइडरमैन-३ ज़रूर देखिए क्यूंकि इसमें स्पाइडरमैन है, खूबसूरत मैरी जेन है, बेहतरीन स्टंट, और एक्शन है, लेकिन इससे भी बड़ी बात है आपको बाँध के रखने वाली कहानी। राग |
Monday, May 21, 2007
सैन फ्रांसिस्को की हमारी ताज़ा यात्रा
अमरीका में रहते हुये अब ५ साल से ऊपर हो गए मगर पश्चिम में जाने का मौका हमें अब मिला। यूँ तो यात्रा करीब ४ दिन की थी, मगर दौड़ भागी में ही समय निकल गया और पर्यटन कम हो पाया। लेकिन हर नयी जगह का अपना अनुभव अलग ही होता है। सबसे बड़ी गलती ये कि हम जाते वक्त अपना कैमरा भूल गए, अब इस पर कितनी डांट खायी, ये बात फिर कभी। एक खास बात जो देखी सैन फ़्रांसिस्को में वो ये कि वहाँ के लोग पर्यावरण के प्रति बाक़ी जगहों से जागरूक लगे। कूड़ा रिसाईकल करने के लिए सब जगह सुविधाएं थीं। अधिकतर लोग सी ऍफ़ एल बल्ब का प्रयोग करते हैं। यहाँ तक कि विशालकाय सैन फ़्रांसिस्को पुल पर भी सी ऍफ़ एल बल्ब लगे थे। सैन फ़्रांसिस्को से कई छोटे शहर भी जुड़े हुए हैं, जैसे कि फ्रेमोंट, जहाँ काफी भारतीय रहते हैं। फ्रेमोंट इतना खूबसूरत है, जैसे जन्नत, बिना किसी अतिशयोक्ति। फिर से तस्वीरों कि कमी खल रही है। वहाँ एक भारतीय-पाकिस्तानी भोजनालय में ख़ूब खाना खाया। गजब का सस्ता खाना, और बड़ा स्वादिष्ट। शाम को खाने के समय ऐसे भीड़ देखने को मिलती कि लगता कोई अपने घर में खाना बनाना ही नहीं चाहता। लोग फ़ोन से आर्डर करके फिर खाना लेके भी जाते थे। सफाई के बारे में ज्यादा कुछ खास नहीं कहा जा सकता, लेकिन जहाँ इतना खाना बनता हो वहाँ ठीक ही होगा ;)। मगर जाने क्यों भारतीय दुकानों के शौचालय कहीँ साफ क्यों नहीं मिलते? कहना मुश्किल है मगर क्या ये हमारा राष्ट्रीय चरित्र दिखाता है? एक दो भारतीय कपड़ों की दुकान भी दिखी, पर जाने क्यों महिलाओं के भारतीय कपड़े अमरीका में बड़े ही बेकार मिलते हैं (हमारी धर्म पत्नी के अनुसार)। जैसा हमने पहले कहा है सैन फ़्रांसिस्को में मानचित्र आसानी से मिल जाते हैं, लेकिन यहाँ अमेरिका के बाक़ी शहरों की तरह हर हाईवे एग्जिट की संख्या नहीं होती, जिससे कई बार धोखा हो सकता है कहीँ पहुंचने में, इसलिये गाड़ी चलते वक़्त ज्यादा ध्यान देना पड़ता है। खैर अब हमारा सैन फ़्रांसिस्को कई बार आना जाना होता रहेगा तो तस्वीरों की कमी भी जल्दी पूरी कर देंगे। राग |