Monday, June 05, 2006

विनय और आत्मसम्मान की कमी

संपादितः जुलाई 5
बदतमीज़ी का एक और सबूत। आर्मी के जवानों की हरकत।

संपादितः जून 21

मेरे चिट्ठे को साबित करता एक लेख। मुंबई दुनिया का सबसे अशिष्ट शहर।


पिछले चिट्ठे में मैंने भारत में बढ़ती कई समस्याओं की तरफ एक साथ ध्यान दिलाने का प्रयास किया था। हम सब अपनी तरफ से इनके हल समझने और सुलझाने का प्रयास करते हैं। ये चिट्ठा मेरी तरफ से इस दिशा में एक कदम है।

मेरा मानना है की हमारी आधी से ज्यादा समस्याओं का कारण है हममें विनय और आत्मसम्मान की कमी। आप किसी भी समस्या के मूल में जाएंगे तो आपको इस बात का एहसास होगा की...

1. हम अपनी इज्ज़त खुद नहीं करते।
2. हम दूसरों की भी इज्ज़त नहीं करते।
3. हम सबसे अपनी इज्ज़त की अपेक्षा रखते हैं।

इन सब के समर्थन में मैं साधारण जि़न्दगी के उदाहरण पेश करूंगा और हो सका तो इनका हल बताने का प्रयास करूंगा।

हम जहाँ खाना खाते हैं वहीं गन्दगी करते हैं। उदाहरण, अपना घर छोड़ कर सब जगह।

हम छोटे रेस्तरां के बैरे से, सफाई करने वाले कर्मचारी से, सब्जी बेचने वाले से, सरकारी दफ्तर में (जैसे बैंक, डाकघर) उपभोक्ता से ऐसे बात करते हैं, जैसे वो कटखना कुत्ता हो। पुलिस वाला/वाली किसी को पकड़ ले तो एसे थप्पड़ मारते हैं, कि कोई जानवर को भी ना मारे (अपराध सिद्ध हो जाए, तब तो बात ही अलग)।

अनजाने में किसी से नज़र मिल जाए तो सिर झुकाके नमस्कार करने के बजाए ऐसे नज़र चुरा लेते हैं, जैसे भूत देख लिया हो।

यातायात के नियम तोड़ने में शेखी समझते हैं। ठीक जगह गाड़ी पार्क करने में शरम आती है। पुलिसवाला या कोई अन्य मना करे और हमारी पहुँच ऊँची हो तो उससे भी बदतमीजी करते हैं।

कहीं भी थूकना हम अधिकार समझते हैं।और थूकते वक्त इस बात का तो बिलकुल ख्याल नहीं करते की किसी पर छींटा ना पड़ जाए।कोई टोके तो उससे लड़ भी जाते हैं।

अधिकारी हो कर जिम्मेदारी से काम नहीं करते, शिक्षक हो कर ठीक से पढ़ाना नहीं चाहते, स्वयं विद्यार्थियों को सम्मान नहीं देते और सम्मान की पूरी अपेक्षा रखते हैं। कुछ ऐसे भी बाप हैं जो दफ्तर में भ्रष्टाचार करते हैं और घऱ में इसका गुणगान भी करते हैं। इसके बाद अपने बच्चों से सम्मान की अपेक्षा करते हैं।

महिलाओं की इज्ज़त तो जैसे खून में ही नहीं है, इसलिए हर औरत खासकर जो पहुंच में हो उससे बदतमीज़ी करते हैं, बलात्कार करते हैं, कुछ ना हो सका तो घटिया "कमेंट" देने से नहीं चूकते।

वृद्धावस्था में पहुँच कर नई पीढ़ी को न सिर्फ अतिशय सुझाव देते हैं, बल्कि अपनी तरह से चलाना भी चाहते हैं। राजनीति इसका प्रबल उदाहरण है। ये समाचार तो बहुत शर्मनाक है कि तमिलनाडू के मुख्यमंत्री 83 साल के हैं, और कुछ लोग इस मौके पर जश्न मना रहे हैं।

हम अपने वोट की कीमत न समझते हैं, न समझना चाहते हैं। हम अपने सुझाव की कीमत नहीं समझते, और न अपनी बातों की। समाचार का शीर्षक पढ़के राय बना लेते हैं और दंगा करते हैं। राष्ट्रीय या स्थानीय किसी भी मुद्दे पर जानकारी इकट्ठा नहीं करना चाहते जब तक खुद पर मुसीबत ना आ जाए। उसके बाद किसी भी नेता की बातों में आकर बवाल करतें हैं।अपनी ही सरकारी संपत्ति को खुल के नष्ट करते हैं।

24 घंटे बिजली ना मिलने को अपनी किस्मत समझते हैं। समय पर पानी ना मिलना, नल में गंदा पानी आना रोज़मर्रा की बात है।

हमें आगे बढ़ने के लिए, समस्याओं से निजात पाने के लिए खुद का आत्मसम्मान बढ़ाना पड़ेगा।दूसरों की इज्ज़त करनी पड़गी, तब हमारी बातों का कोई अर्थ होगा, समाज में इज्ज़त होगी, राजनीतिज्ञों को हमारी बात माननी पड़गी। डाक्टरों के द्वारा हाल में किए विरोधों में ये बात खास रही की उन्होंने आरक्षण के विरोध प्रदर्शन में किसी सरकारी संपत्ति को नुकसान नहीं पहुँचाया, और न ही किसी रैली में या साक्षात्कार में अपशब्दों का प्रयोग किया गया। मेरी नज़र में इस विरोध का ये भी एक खास पहलू था।

मेरा मानना है की हमें आगे बढ़ने के लिए अपने मानसिक स्तर को ऊपर उठाना होगा और पारिवारिक और निजी स्तर पर

1. हमें अपनी इज्ज़त स्वयं करनी पड़गी।
2. हमें हर दूसरे इंसान की भी इज्ज़त करनी सीखनी पड़गी।
3. इसके बाद हमें इज्ज़त की अपेक्षा रखनी चाहिए।

आगे के चिट्ठों में मैं रोज़मर्रा की जिन्दगी के साधारण उदाहरण पेश करूँगा, जब हम ग़लत तरीके से व्यवहार करते हैं, जबकि हम बेहतर तरीके से व्यवहार कर सकते हैं।

भारत के सुनहरे भविष्य की खोज में...

अनुराग